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५२ जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो. रे, खंम वीजे गायो रे, ढाल दशमी त्रिष्टप्ठनो जायो, तीहां जीतियो रे ॥२४॥
॥दोहा ॥ ॥ अमिततेज मारीचने, कहे एणी परें नास ॥ नगरमांहे जा तुमें, वहेन सुतारा पास ॥१॥ तेडी लावो अम कनें, अचलमुनिनी पास ॥ जीतनगारां देश वटयो, नावुक सहित उन्नास ॥ ॥ नगरीमें बलनमुनि, पासेंधाव्या नूप ॥ प्रथम गया जिनदेहरे, निरखे देव स्वरूप ॥ ३ ॥ निराकार जिनरूपनी, स्तवना करे अनूप ॥ जय युगादि जिन वर विनो, जय जय अकल अरूप ॥ ४ ॥ नमी स्तवी जिनराजने, यावे सशुरु संग ॥ मुनि देखी मन ऊपन्यो, सवल धर्मनो रंग ॥ ५ ॥ गुरु वंदे गुरुनक्तिशृं, गिरुथा ते गुणवंत ॥ मुनिवर देखीने थया, तेहनां शीतल मन्न ॥ ६ ॥ शील अखंमित ते सती, नारी सुतारा ठाम ॥ पूंचल धावी . पद्मिनी, निरुपम गुणतुं धाम ॥७॥ ते निरखी हर्षित दुधा, पति बांधव वेदु . प्रेम ॥ मन विकस्युं तन उन्नस्युं, जिनगुरुदर्शनें दम ॥ ॥ दिये दे शन मुनिवर हवे, नविक जीव हितकाज ॥ नवदव ताप शमाववा, जिम पुष्कर धनगाज ॥ ए॥
॥ढाल अग्यारमी॥ .. ॥ विमल केवली एक रे ॥ ए देशी ॥ केवली अचल मुणिंद, कहे न . वियण सुपो ॥ निज बातमं निर्मल करो ए ॥ १ ॥ काढो मेल अनादि, . . माहे जे जयो ॥ नव अनंत नेलो कस्यो ए ॥ २ ॥ नमो यावरणी जीव, नव चोगानमां ॥ भ्रांति विविध भ्रमनूलमा ए ॥ ३ ॥ जाणे सार असार, अस्थिरने घर कहे ॥ एम विपर्ययमां पज्यो ए॥ ४॥पीडे दोय विकल्प, : राग ने प ए॥अरति वधारण धाकला ए ॥५॥ महोटा ए परमाद,थात माहे कह्या ॥ कथला जग एहना घणा ए ॥६॥ कुण पावत जग सुख, न तो कुण सुरखी ॥ जो जग ए नडता नहीं ए ॥ ७ ॥ एक पेटमा दोय, दोय चली अन्येमां ॥ चार थाये वली चोगुणा ए॥ ७ ॥ एहनो बद्ध वि स्तार, वांधे जव घणो ॥ धन्य बलिया जिणें वश करखा ए ॥ ए॥ कोटि कटक जट जीते, रेणमा एकलो ॥ पण दोय जीते ते नलो ए॥ १७ ॥ ए जीत्ये सवि जीत्या बाजी जीवनी ॥ एम अनंतनाणी कमु ए ॥ ११ ॥ अशनिघोप नेपाल, मुग, मन समजीयो । धिकू में कुल मेलु कन्यु ए ॥
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