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जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो.
णी प्रभु विचरिया || ल० ॥ ल० ॥ नहिं मन मोहविकार ॥ सा० ॥ प्रभु निर्मोही वंदीने ॥ ० ॥ ० ॥ पाठो वल्यो परिवार ॥ सा० ॥३४॥ इंशदिक सहु देवता || ल० ॥ ल० ॥ नंदीश्वर करे यात्र ॥ सा० ॥ गणतां सुरसुख तृण समुं ॥ ल० ॥ ल० || पावन कीधां गात्र ॥ सा० ॥ ३५ ॥ खं हे नवमी जली || ल० ॥ ० ॥ ढाल दीक्षा अधिकार ॥ सा० ॥ राम कहे सुतां सही ॥लणाल॥ लहियें नव निस्तार ॥ सा ॥ ३६ ॥ २७५॥ ॥ दोहा ॥
॥ वीजे दिन जिन शांतिजी, कोइ सन्निवेश मजार ॥ परमान्नें करें पारणं, सुमित्रतणे घरवार ॥ १ ॥ पंच दिव्य परगट दुवां, साठी बारह कोडि || वृष्टि यई सोवन तणी, पहोता वांबित कोड ॥ २ ॥ यक्तं ॥ तेरस कोडी, नकोसा तब होइ वसुधारा || तेरस लरका, जन्निया होइ वसुधारा ॥ १ ॥ पूर्वदोहा ॥ ग्रामाकर पुर विचरतां, शांतीश्वर जिन चंद ॥ प्रतिबंध पट् कायना, पालक महामुदि ॥ ३ ॥ ॥ ढाल दशमी ॥
॥ आज सखी शंखेश्वरो ॥ ए देशी ॥ चननाणी चोखे चित्तें, मं मलमांहे ॥ सम तृण मणि नावे विनु, विचरे उत्साहै ॥ १ ॥ कल्पाती तपणुं नजे, कुविकल्प निवारी || योगस्वरूपी योगना, धारक ब्रह्मचारी ॥ २ ॥ वरते शुद्ध मुनि जावमां, विरता दमवंता ॥ साधक शिवपदपं थना, सुधा गुणवंता ॥ ३ ॥ अमल प्रमायी अंतरें, खंतीगुण पूरा ॥ पडिमा व्यनिग्रह धारता, मौनी प्रभु शूरा ॥ ४॥ याव मास ब्रद्मस्थमां, विचरी प्रभु चाव्या ॥ गजपुर नयरें तिल वनें, जगतीजन जाव्या ॥ ५ ॥ पत्र फूल फलें नंदतो, नंदी तरु सोहे ॥ तिहां प्रभुजी पान धारीया, जविजन मन मोहे ॥ ६ ॥ शुक्लध्यानमां वर्त्तता, तप व चोविहार | पोप नवमी तिथि कजली, निर्मल गुणधार ॥ ७ ॥ नरणी उरु राशी श्रावियो, गुन वेला स्वामी ॥ निर्मल ध्यानदशा वधी, चढते परिणामी ॥ ८ ॥ घाती कर्म दय घातियां, व्यविनाशी नावें || उज्ज्वल केवल कपन्युं, निरुपाधि वनावें ॥ए॥ नासक लोकालोकनुं, ति वेला प्रगटयं ॥ दोष ढारनुं तिल समे, बल सवलुं विघटयुं ॥ १० ॥ अंतराय लगा थया, दुःखदायी माठा ॥ हास्य रति रति वेगली, जय सघलां घाठां ॥ ११ शोक डुगंठा सा
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