________________
__ श्री शांतिनायनो रास खेम कहो. ३१३ मटी, मिथ्यात्वने काम ॥ वास्या बैरी अनादिना, दायिकगुणधाम || १२ ॥ श्राबादन धज्ञान,, उमाडी नारव्यु ॥ निश नाती बापडी, थनुनव सुरव चारव्यु ॥ १३॥ अधिरति नवि कनी रही, अलगांथी जांखी ॥ गग हेप वेता वरी, हथियारने नारखी ॥ १४ ॥ दोप थढारथी वेगखो, प्रनु शांति जिणंदो ॥ तिण वेला अनुनावथी, चलियांसन इंदो ॥ १५॥ सुर मलिया चार निकायना, ततण तिहां थावे ॥ वायुकु मारा नृमिनो, योजन समरावे ॥ १६ ॥ मेघसरा गंधोदकें, रजनूमि समारे ।। मणिमय पीठ रचे तिहां, अति हर्प पमाडे ॥ १७ ॥ नुवनपति ने ज्योतिषी, वैमानिक देवा ॥ रूप कनक मणि रयणना, विरचे गढ़ देवा ॥ १८ ॥ चिटुं दिशि चार विराजती, तोरणनी माला ॥ सुरनर मन मोही रहे, अति काक ऊमाता ॥ १५ ॥ पावदियां गोने जलां, वीश सहसनी संख्या । जव तरप लागे नहीं, ते नयण देख्यां ॥ २० ॥ हादश गुण प्रच अंगथी, तेह मध्य अशोक ॥ जे नजरें दी थके, नासे सवि शोक ॥ २१ ॥ चिटुं दिशि सिंहासन जलां, नत्रय चारु ॥ चामर सुर व्यं तर सये, विरचे दीदारु ॥ २२ ॥ अचिरानंदन शांति जी, पूरव दिशि छारें ॥ पेले तीर्थ नमस्करी, सुर नेवा सारे ॥ १३ ॥ पूर्वदिश सिंहासने, वेसे जिनदेवा ॥ प्रनु, प्रतिरूप करी उवे, निढुं दिशि तिहां देवा ॥ २४ ॥ नाममल पूर्व घरगुं, करे कुसमनी दृष्टि । जानुप्रमाण निरंतरें, थइ मन संतुष्टि ॥ २५ ॥ थंवर वाजे उनि, नो नो नवि लोका ॥ जाण करे ग्याची नमो. ज्युं था अगोका ॥ २६ ॥ पारे परिपद तिहां मले, जिन वानी लुणेवा ॥ कर जोर्डी नावें रही, नवनय श्रवगणया ॥ २२ ॥ मुर वनिता मुनि माधयी, त्रिज्ञ अग्नि निकोणे॥ध्यंतर भुवन ने ज्योतिषी, त्रय नेत जाणे ॥ २ ॥ ते सुर वायव्य कृपामां, बमानिक निदगा ॥ ना नारी ईशानमां, त्रिदं पर्षद मुगा ॥ २ ॥ एनवी बारे पपंदा, मला गटमां ने ॥ चीज्ञा गरमांद सवे, तियन शुचिदेशे ॥३०॥ गेप्य माणा गामा रहे, वाहन मवि जननां ॥ प्रनु दारितणधी नविग्ने, म सर निज मनना ॥ २१ ॥ एम. ॥ नारंगी निंद्रमा राति सुतधिया
नमिनी यामपान, माजगि नया प्रयपग्निदाकरिता जुर्ज .
नगपाजन्मजातान्यपि जिनमदा जनगाव यजनि, मिला
वनिता am na" पर्षद मुयमा
विदेशे ॥३
म