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श्री शांतिनायनो रास खंग चोयो.
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यो रे, धर्म न विहडे जाचो ॥ साची धर्मतणी ए सगाई, इह जव परजव बहु सुखदायी ॥ मित्र जुहार समो ए कहियें, रात्रि दिवस ए ध्यानमां रहिये ॥ जीवाणा ने बेहु ने जांखीयो रे, श्रावक ने पगार || पहेलो परंपर हेतु ने रे, बीजो व्यनंतर सार ॥ बीजो अनंतर कारण कहियें, अंतर मुहूरतमां शिव लहियें ॥ उत्क करे जब सात घ्याव, एवो श्रीजिन श्रागमपात || जीवा ॥ ७ ॥ धर्म धर्म सहुको कहे रे, पण न लहे तस मर्म ॥ श्रातमवने श्रादरे रे नवि वंधाये कर्म ॥ नवि वंधाये कर्म ए नामें स्थापनाइव्ये सहु जग कामें ॥ जावनिकेपा नामे राची, तं मुनि मारगमांहे साचो || जी वा ॥ ८ ॥ पूत्रे सुणि गुरुदेशना रे, शेठ पुरंदर साधुं ॥ कहो पुण्यसारे गुं कर्तुं रे, पूरवजव पुष्प जाएं ॥ पूरवनवनुं पुण्य प्रकासो. कहे मुनिवर मत राखो सांसो | नीतिपुरे कोई कुलपून, पहेले नवें दूतो गतसुत ॥ जी वा० ॥ ए ॥ खेद लह्यो संसारथी रे, चरणयसुं गुरु पायें ॥ ल दीक्षा शिक्षा सहे रे, संयमपंथ
या ॥ संयम सुधो चाले, मंच समिति त्रण गुतिने पाले | कायति हता नहिं तेहवी. मुनिमारगमां दाखी जेवी ॥ जी वा० ॥ १० ॥ मंग मगादि परिसंह रे. कायोत्सर्ग मकार | स्थिरता न रहे मी रेवति यति वहेलो पारे । पारे वली बली बहेलो जेवा, नांखे नरु तैयारे || व्यावश्यक खंमन नवि कीजें, प्राण जते पण नवि चुकीनें ॥ जीवा ॥ ११ ॥ यतः ॥ वरमगिम्मि पवेसी, वरं विसु कम्मला मरणं ॥ सा हि यनंगो, माजीपं खनिय सर ॥ १ ॥ पूर्वदा ॥ फरि फरि मारग बोलि के हो न यावे हाये || शाता नामां परे, लकयुं जिननायें ॥ क साधुं जिन सरहिये जिम वेद ॥ व्रत पालतां नीम न तो शिव मां जये ॥ जीवा० ॥ १२ ॥ पापनीत नाय तो सद पण पाने ॥ निर्वaar, dear तंजावे ॥ यावन करे रानी पर मांजी नीनी ॥ मरण सही पर्या सुर सोधम्मै, विनय ॥ ० ॥ १० ॥ प्रवचन माना मानने में पानी देने सात प्रिया पर नेपाली एक काम नारी
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