________________
२०
जैनकथा रत्नकोष नाग प्राठमो.
2
माटें परमाद निवारी, संपूरण पालो सुविचारी ॥ जी वा० ॥ १४ ॥ शेव पुरंदर सांजली रे, मन पाम्यो वैराग्य ॥ ग्रहे दीक्षा गुरुजीकने रे, खाणी अनुभव राग ॥ अनुभव वात हैयामां राखी, पुण्यसार श्रावक मुनि साखी || वंदी जनक मुनि घर छाया, रात दिवस तेहना गुण गाया || जी वा० ॥ १५ ॥ श्रावक व्रत आराधतो रे, पाले शुद्ध प्राचार ॥ दान सुपात्रे दे जलां रे, पुण्य करे पुण्यसार || पुण्यसार करे पुण्य कमाई, या रमणी सायें उत्साही ॥ अनुक्रमें पुत्रने सोंपी जार, सजुरु पासें
या पगार ॥ जीवा ॥ १६ ॥ चारित्र पाली रूयडुं रे, नाव घरी नजमाल ॥ मुक्के गयो मुनिराजीयो रे, बढूं हुं त्रण काल ॥ वंदूं वात मुनीश्वरें नांखी, कनकशक्ति आागल हित राखी ॥ चोथे सत्त्यावीशमी ढाल, रामें मुनि गुण गाया रसाल ॥जी वा ॥ १ ॥इति पुण्यसार संबंधः ॥ १९७॥२८ ॥ दोहा ॥
॥ निसुणी श्री गुरुदेशना, कनकशक्ति नृपनंद ॥ संयम सुधुं छादरे, मनमां धरियानंद ॥ १ ॥ विपुलमति मुनि तेहने दे हितशिक्षा सार ॥ संयम मारग दोहिलो, जेदवी खंमाधार ॥ २ ॥ निरतिचारपणे तुमो, पालेजो निर्धार ॥ व्रत लेई पाले खरां, धन्य तेहनो अवतार ॥ ३ ॥ व्रतिनी विमलमति कने, दोय नारी लिये दिरक || तजि संसार विराग नजी, चाले रूडी शीख ॥ ४ ॥ कनकशक्ति मुनि विचरतो, सिद्धपर्वतें याय ॥ एक रात पडिमा रह्यो, शिला उपर गुन वाय ॥ ५ ॥ पूरव जवनो मत्सरी, हेमचूलानिध देव || करे उपसर्ग तिहां घणा, वैरजावनी देव ॥ ६ ॥ मुनि निश्चल ध्यानें रह्यो, जाणे सुरगिरि ट्रंक ॥ विद्याधर मलि वारियो, देव गयो मुनि मूक ॥ ७ ॥ प्रहसमे प्रतिमा पारिने, विचरंतो नृपीठ ॥ रत्नसंचया प्रवियो, गिरुडे सुगुण गिरिठ ॥ ८ ॥ सूरिनिपात उद्या नमां, काउस्सग्ग रहियो सोय ॥ मुनिध्यानें जीनो सवल, घातिकर्म मल धोय ॥ ए ॥ उज्ज्वल केवल ऊपन्युं, ऊलहल जागे दिद । सुर नर विद्या धर मली, उत्सव करे मंद ॥ १० ॥ वज्रायुध करि नक्ति बहु धन धन तुम्हो मुलिंद ॥ कर्मकटक जींत्युं सबल, निर्मल ज्ञान दिद ॥ ११. || देशन सुणि घेर याविया, वज्रायुध नरदेव ॥ यहोनिश सारे जेहनी, सोल सहस यह सेव ॥ १२ ॥