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श्री शांतिनाथनो रास खंग न ३३ दोपानकि हीण ए दशमोसही,श्रावक ए चादरवा नहिं ॥१॥इति सामा यिकछात्रिंशदोपस्वरूपं ॥काव्यंगबत्तीसदोसेहिं विसुहिमेअंकरिङ सामाश्य मप्प मत्तो ॥ निचं नरो जो निस दीस कालं,वरित तं मुत्तिरमा कमेणं ॥१॥ ॥ दोहो ॥ ए व्रत ऊपर जिन कहे, सिंहश्रावक अवदात ॥ न विक जीव सदु सांजले, करि निजमन एकांत ॥ १ ॥ ढाल ॥ स वाइ गुरु वाहणनी परें तारे ॥ए देशी ॥ जरते रमणीय इए नाम,पुर सुंदर शोजा गम, बहु जंतुनो विश्राम ॥ १ ॥ जिपंदराय देशना देई तारे, नव जलनिधि पार उतारे ॥ जि ॥ ए आंकणी ॥ तिहां हेमांगद अनि धान, राजा बहु बुदिनिधान, सुंदर तन शोने वान ॥ जि० ॥ ॥ हे मश्री तेहने राणी, रूपें जीती इंशपी, वली लावण्यगुणमणि खाणी ॥ जि० ॥ ३ ॥ श्रावक जिनदेव विचारी, जिनदासी तस घर नारी, शी लादि गुणें करि सारी ॥ जि ॥ ४ ॥ सिंह नामें दो धंगज सोहे, रूपें साजन मन मोहे, कदिये ते न रहे कोहें ॥ जि० ॥ ५ ॥ नीवाऽजीवा दिक जाण, समजु सवलो गुणखाण, मावित्रने जीवनप्राण ॥ जिप ॥ ६ ॥ विदु टंक आवश्यककारी, सूधो सामायिकधारी, रुडो श्रावक श्राचारी ॥ लिए ॥ ७ ॥ इक दिन सारथ संघातें,चाव्यो व्यापारने हेतें, सिंह लइ करियाणुं खंत ॥ जि ॥ ७ ॥ साथ उतखो घटवीमाहे, तटिनीतट जोइ उत्साहें, लीधुं सामाविक सिंह शाह ॥ नि ॥ ए ॥ सघलो प्रारंन निवारी, मुनिनी परें समताधारी, करि मन वच तन एक तारी ॥ जि ॥ १० ॥ तटिनी जल शीतल वासें, बदु कडे मशकनी गों, करयो धूम बदु तब त्रासें ॥ जि० ॥ ११ ॥ रह्यो सिंह थचल गुरा गेह, सहे मशकपरीतह देह, न चले मेरु जिम तेह ॥ जि ॥ १२ ॥ बदु मशक समूह विंटाणो, थावी मलियो तब टाणो, ध्यान दीपक नवि उजवाणो ॥ जि० ॥१३॥ त्वच नेदीने मुख माहे घाली,पीये रुधिर ते मश कनी थाली, सिंह काया न संजाली ॥ जि० ॥ १४ ॥ जाणे ए पुल सार, प्रत पालीजें निर्धार, ए विषु जम्यो बहु संसार ॥ जि० ॥ १५ ॥ फानो नहिं तु तुझ कोइ, मत रहे तन उपर मोही, रखे जातो ए व्रत खोइ ॥ जि ॥ १६ ॥ निश्चत परिणाम रहियो, परिसह उत्कट तेणं साहियो, एडवो सिंहो जन कहियो ॥ जि०॥ १॥ याव्यो दक्षिण