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जैनकया रत्तकोष नाग आठमो.
पसाय || हे मंत्रीश्वर ताहरु, फलियुं नाग्य सहाय ॥ ५ ॥ वात नही दैवज्ञयी, सुतदूंती ए कष्ट || राखी पेटीमां तनय, कयुं काम में इष्ट ॥ ६ ॥ श्रीजिनधर्मप्रभावथी, थई विघ्न उपशांति ॥ यवश टल्युं वेला वली, वाधी वमणी कांति ॥ ७ ॥ श्राव्यो एह निमित्तयी, मन वैराग्य पा
|| सुत स्थापी निजपद विन्हे, लीधो संयमनार ॥८॥ सुगतें गया वेहू मुनि, साध्यं व्यतम काज ॥ अमरदत्त कहे मित्र एम, व्यंतर घाणो वाज || || ॥ ढाल पांचमी ॥
॥ हांरे मोरा वालमा ॥ ए देशी ॥ कहे यमरदत्त सुण मित्रानंद, करशुं काम विमास || मोरा वालमा, हांरे मोरा बांधवा, हांरे मोरा साजना ॥ ए यांकी ॥ कलिया बलीया यागलें रे नाइ, जाये व्यंतर नासी ॥मो॥१॥ तुक उगारण काजें आपण, जागुं वे परदेश || मो० ॥ तुज मुफ प्रीति वनी प्रति गाढी, जिहां तुं तिहां सहि देश || मो० ॥ २ ॥ नाइ वेह न देवो तुमने, जिहां लगें घटमां प्राण । मो० ॥ शी चिंता चित्तमां घरो रे नाइ, मोजी तुं महेरा ॥ मो० ॥ ३ ॥ सात मगलानी प्रीतडी रे राखे, साजन जीवित सीम || मो० ॥ नेह करी दीये नेहजो रे वालमा, मित्र नहिं ते गनीम || मो० ॥ ४ ॥ मित्रानंद सुणी वोलियो रे | बंधवा ॥ तुं सुकुमार शरीर || मो० ॥ सुख मूकी परदेशडे रे ॥ बं० ॥ केम सहेवा शे पीड ॥ मो० ॥ ५ ॥ कहे अमर जे प्रीतिना रे || वं० ॥ बोल्या बहु परे बोल || मो० ॥ मुऊ घटमां तु नेहलो रे ॥ ०॥ वेठो जेम रंगचोल॥मो० ॥ ६ ॥ ए अवसर यावी पढये रे ॥ वं० ॥ केम रहुं नेहने नाखि || मो० ॥ तुम विपा सवि शूनुं इहां रे ॥ वं० ॥ तुं तो मोरी यांख ॥ मो० ॥ ७ ॥ एकमना थया ते बन्ने रे || बं० ॥ जु जु नेहनी वात ॥ मो० ॥ नेह निवेडे ते जना रे || वं० ॥ जननीलाया सुजात ॥ मो० ॥ ८ ॥ काम ! पडे कूदी चले रे ॥ वं० ॥ कलिमां जूवो कुजात ॥मो० ॥ कामवेला व्यावि मजे रे ॥ ॥ खाये मारी लात || मो० ॥ ए॥ माखण साजन वेमां रे ॥ ॥ सन यति सुकुमाल ॥ मो० ॥ तापं माखण वीघरे ॥ साजनां ॥ प्रतापे ततकाल ॥ मो० ॥ १० ॥ सोनुं सुपुरुष चंदना रे ॥ सा० ॥ श्रापण पीड खमंत ॥ मो० ॥ कुल कसबटें जापीयें रे ॥ सा० ॥ पर उपकार करंत || मो० ॥ ११ ॥ तूंच कटुक तंती नीरसा रे ॥ सा० ॥ दारुक शुकुं तेम ||मो| सर
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