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जैनकथा रत्नकोप नाग आग्मो. ॥७॥गजवरनें बंधे बेसारी, नृप साथे कीधी असवारी ॥ बदु लोक खलक मलियो जोवा, वलगाडि वत्स न रहे दोवा ॥ आ ॥ ॥ कोई कामिनी पिरसंती धाई, उमंते अंबर कजाइ ॥ परवाल चढावीने के., कोई का मिनी जोवाने हीमे ॥ आ० ॥ ए ॥ एक थावे फूठे हाथे धसी, ऊजातां उढण जाय खसी ॥ एक आवे ऊमंती कवरी, मनु मुखकज ऊपर ए ब्र मरी ॥१०॥ एक अलते रंजीते करणा, पहेरे साडी ढे चरणा ॥ एक कुंकुम विंदी दे गालें, काजलनो विंड दिये जालें । आप ॥ ११ ॥ रहि रजसपणे पियुनी जोडें, कर ऊंचा करी आलस मोडे ॥ एक सुंदरी सामुं हेज धरी, मत्स्योदरने जोवे फरीय फरी ॥आ ॥ १२ ॥ तिहां मलिया वहु माणसवृंदा, वाजे वाजींतर नवनव बंदां ॥ शेठ महाजन
आगे रंग नरिया, अंगें पहेस्या वाधा केसरीया ॥धा ॥ १३ ॥ सदु बोले मुख जय जय वाणी, धन धनदकुमर ए धणियाणी ॥ धन्य जननी जेणे कुंवर जायो, कुल अंवर ए दिनमणि आयो ॥ या० ॥ १४ ॥ एम धामंचरें निज घर आया, सदु साजन जन मनमें नाया ॥ वदु साधे नृपति रंग रली, मंदिरमाहे वेग सुजन मली ॥या ॥ १५ ॥ करे . सेवा शेठ नरेश्वरनी, मुफ करुणा थइ परमेश्वरनी ॥ मुफ अंगरा जे नृपति आयो, नरि मोती थाल ए वधायो ॥ आ० ॥ १६ ॥ एहवे याव्यो मालाकार, नृप आगल फूल धयां सार । नत्संग राजकुमर वेठो, लिये फूल करीनिज कर तो ॥ आप ॥ १७ ॥ जब नाके वास लिये सारी, तब कुंवर ऊपयो पोकारी ॥ जु जुरे सेवक यह वहेला, ए फूलमांहे ठे शीरे वला ॥ श्रा० ॥ १७ ॥ तव जोवे सूक्ष्म नजरें करी, माहे देखे 'इयल अति निखरी ॥ ए राजसर्प सदु एम वोले, एहतुं विप नहिं कोड्ने तोलें ॥ या ॥ १५ ॥णे दीसे राजकुमर मग्यो, नृप मनमांहे दुःख
जोरें वस्यो ॥ धा धाउरे तेडो गारुडी, एम बोल्यो राजा पारडी ॥ • था ॥ २० ॥ कहे गारुडी ए अमथी न बले, ए मश्यो कुंवर अति सवले ॥ जोतां ततण मूवी धावी, न टने जे टाव्युं कोई जावी ॥ श्रा ॥ १॥ कहे धनंद करो तुमें शी चिंता, महाराज रहो यह निश्चिता ॥ . विहां गंटयुं देविदत्ते मणि नीर, तब ऊग्यो कुंवर वड वीर ॥ या० ॥२२॥ बडीपी वर्ष वयोमपी, वधी प्रीति मत्स्योदर' घणी ॥ निजमंदिर