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जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो.
जूवो निरखी जेम, संदेह टले परो रे लो || क० ॥ रा० ॥ परखीने निरवंतां, ते जाएयो खरो रे जो ॥ सु० ॥ २८ ॥ रा० ॥ पूढे ए चुं कारण, मुऊ दाखो तुमें रे जो ॥ क० ॥ रा० ॥ कहे पुष्पदेव कहंतां, लाजूं
मेंरे जो ॥ सु० ॥ रा० ॥ वात सुणीने मनमां, नृप कोप्यो घणो रे लो ॥ क० ॥ रा० ॥ कहे व्यारक्षक नरने, जइ एहने हो रे जो ॥ सु० ॥ २७ ॥ ज० ॥ करीय कदर्थना पुर, शेरीमां फेरीयो रे लो ॥ क० ॥ ज० ॥ जइ वधमें नृप, सुनटें ते मारीयो लो || सु० ॥ ज० ॥ गयो नरकावनि ताजी, जिहां प्रयपूतली रे लो ॥ क० ॥ ० ॥ लिंगावे
सुर, पचारे वली वली रे लो ॥ सु० ॥३०॥ ज० ॥ नमो ते बहुकाल, लगे संसारमां रे लो ॥ क० ॥ ज० ॥ रहे एम विषय नड्या जव, कारा गारमां रे लो || सु० ॥ ज० ॥ बडे खंमें ढाल, कही सत्तवीशमी रे लो ॥ क० ॥ ० ॥ शांतिप्रजुनी देशन, सुष्णो साकर समी रे लो || सु० ॥ ३१ ॥ इति चतुर्थव्रतोपरि कराल पिंगलपुरोहित कथानकम् ॥ ४ ॥ सर्व गाया || १०४३ ॥ श्लोक तथा गाया मनी ॥ ५ ॥
॥ अथ पंचम परिग्रहपरिमाणत्रत संबंधः ॥ ॥ दोहा ॥
|| हवे पंचम व्रत जिन कहे, परिग्रहनुं परिमाण || तेम इवापरिमाण वली, जांखे श्री जिनना ॥ १ ॥ सचित्त चित्त मिश्र जाणीयें, परि ग्रहना त्रण नेद ॥ नव चेंदें होय तिम वली, एम नांखें गतवेद ॥ २ ॥ क्षेत्र वासु धन धान्य तेम, रुप्य कूप्य ने हेम || द्विपद चतुष्पदनो सदा, मन राखीजें प्रेम् ॥ ३ ॥ परिग्रह वाध्यो ए घणुं, होय बहु दुःखदातार ॥ सिद्धांतें एहना छठे, चली अनेक प्रकार ॥ ४ ॥ धान्य रत्न स्थावर हिवद, चपद कुप्पविचार || सामान्यें पट् नेद एम, उत्तर चोस चार ॥ ५ ॥ धान्यनेद चोवीश वे, १ जवश्गहूं ने वली ३शानि ॥ ४विहि एसडी ६ कुछ वा, उयपुत्र्या कंगू एरान ॥ ६ ॥ १०तिल ११ मुग १२मासा १३ श्रत सि तिम, १४ हरिमय १ त्रिपुट १६निपाव ॥ १०मठ १८चोला १एयरटी नली, २० मसुर २१ तुंवरि तिम जाव ॥ ७ ॥ २२कुलठी २३धन्नय २४वृत्त चनक, धान्य भेद चोवीश ॥ रत्न जाति वली तेटली, एम नांखे जगदीश ॥ ८ ॥ १सोवन श्त्रपु श्त्रांं धरजत, पलोह ६सीस उमुहिर ||
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