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पुस तेमा ने कहूं, नमी घरातम, २वड्यौपए तम
- श्री शांतिनाथनो रास खंम हो. ३६५ . पापाण एवज १ मणि ११मौक्तिका, १२प्रवाल १३शंख तिम गमि ॥ ए ॥ १५तिणि सागरु १६चंदण वली,१७ वस्त्र १ जन तेम १ एकाष्ठ ॥ २०चर्म २१दंत श्वाल २३गंध तिम, श्वव्यौषध ए काष्ट ॥ १० ॥ स्थावर त्रिढुं ने कह्यु, नमी घर तरु जाणि ॥ हिपद दोय चकारवंध, मा पुस तेम वरवाए ॥ ११ ॥ चकारवंधो गंव्यादि ॥ मानुष्यं दासादीति ।। चोपद दश ने कह्यांगो महिपी तिम नट्ट॥अज एलग आस पासतरग, हय रासन ने करट्ट ॥ १३ ॥ नानाविध उपगरणना,नेद अनेक विचार ॥ कुप्प कह्यो चोसहिमो,परिग्रह नेद उदार ॥१३॥ लोन अल्प जेम जेम हो ये, जेम जेम अल्पारंन ॥ तेम तेम सुख वाधे घणुं, धर्मसिद्धि प्रारंन । १५ ॥ नरनव सार थारोग्यता, धर्म एह सत्य सार ॥ सुख ए संतोप सार ने, विद्यानिश्चय सार ॥ १५ ॥ यतः ॥ ब्रह्मज्ञानविवेकनिर्मतधियः कुर्वत्यहो पुष्कर, यन्मुंचंत्युपनोगनांज्यपि धनान्येकांततोनिःस्टहाः ॥ न प्रप्तानि पुरा न संप्रति न च प्राप्तौ दृढप्रत्ययौ, वांबामात्रपरिग्रहाण्यपि वयं त्यक्तुं न तानि दमाः ॥ १ ॥ पूर्वदोहा ॥ परिग्रहथी विरम्या नहिं, ते लहे सुःख समुदाय ॥ श्रावक सुलस तणी परें, कहे एगी परें जिनराय ॥ १६ ॥ कहे चक्रायुध स्वामिने, सुलस कहो कुण तेह ॥ पंचम व्रत उपर प्रच, परकाशो तुमें जेह ॥ १७ ॥
॥ ढाल अन्यावीशमी ॥ ॥जरत नृप जावद्यु ए ॥ ए देशी ॥ शांति जिणेसर एम कहे ए, सुग चक्रायुध राय॥परिग्रह सुःख दीये ए ॥ नयर अमरपुर जरतमा ए,सवि शो ना समुदाय ॥ परि० ॥ १ ॥ अमरसेन तिहां राजीयो ए, शेत झपनद न सार । प० ॥ श्रावक समकित धारकू ए, जिनगुरु पूजपहार ॥ १० ॥ २ ॥ जिनदेवी तस नारजा ए, रूपें रंजसमान ॥ ५० ॥ सुनस नामें सुत यति नलो ए,सोहे सुगुण निधान ॥ ५० ॥३॥ यौवनवय परणावी यो ए, जिनदास तनया सार ॥ १० ॥ पतिवंदे चाले जनी ए, नामें सुत्नश नारि ॥ प० ॥ ४ ॥ जनक कहेगथी एकदा ए, गुरुपासें ते सुजा ण ॥ ५० ॥ श्रादरे आवक व्रत विना ए. एक परिग्रह परिमाण ॥ प० ॥ ५ ॥ रसिक कलानो अति घपो ए, विपय न वेसे चित्त ॥ ५० ॥ मात विचारे मन्नमां ए, सुत ए शूनो जीत ॥ १७ ॥ ६ ॥ नवि वोले निज