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.३६६ जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो.
नारिघु ए, न जुए दृष्टि सराग ॥ प० ॥ न करे उद्यम वणिजनो ए, रहे. शे ए नि ग्य ॥ १० ॥ ७ ॥ जिनदेवी कहे कंतने ए, निःस्टह सरीखो पूत ॥ ५० ॥ विषय न वांजे चित्तशुं ए, केम चलशे घर सूत ॥ १० ॥ ७ ॥ तेम करो जेम ए विषयने ए, वां वालम नंद ॥ ५० ॥ शेठ कहे नारी जणी ए, बोल मां एम मतिमंद ॥ १० ॥ ए ॥ के. काल अना दिना ए, लाग्या रिपु थइ जेह ॥ ५० ॥ ते रिपुर्ने सुत सोपतां ए, श्यो मावित्र सनेह ॥ ५० ॥ १० ॥ यतः ॥ जोगा न चुक्तावयमेवमुक्ता, स्तपो न तप्तं वयमेव तप्ताः ॥ कालोन यातोवयमेव याता, स्तृष्णा न जीर्ण वयमेव जीर्णाः॥ ॥ पूर्वढाल ॥विण शीखवीयां बावडे ए,आहार विषय विकार ॥ १० ॥ पण अनादिनो दोहिलो ए, धर्मतणो व्यापार ॥ १० ॥ ११ ॥ नवि मूके कामिनी ए, सीधी शेवनी केड ॥ १० ॥ पाड्या पण मुंगर पडे ए, जावी न जाये फेडि ॥ १० ॥ १२ ॥ शेवें नट विट तेडी या ए,जूधारी कमजात ॥ ५० ॥ चतुराई शीखण नणी ए, सोंप्यो तेहने जात ॥ ५० ॥१३॥ लही कुसंगति तेहनी ए,वीसारी सवि वात ॥ ५० ॥ नातर तेणें विसारीयुं ए,इंख्यि सुखनी धात ॥ ५० ॥१४॥ कौतुक हास्य विनोदनी ए.सुणतां वात रसाल ॥ ५० ॥ मन विंधाएं तेहढं ए, पडीयो विषयनी जाल ॥ १० ॥ १५ ॥ निर्वल संगतिथी निपन्यो ए, वेश्यागु संयोग ॥॥ हाव नाव करी नोलव्यो ए, विलसे विपयिक जोग ॥ १० ॥ ॥ १६ ॥ मात पिता धन मोकले ए, मोकले मन धरी नेह ॥ १० ॥ सु त वेगो विलसे तिहां ए, मोह तणी गति एह ॥ १० ॥ १७ ॥ घरहूंती नवि नीसरे ए, लाग्यो गणिका रंग ॥ ५० ॥ विपय अग्निमां जीवडा ए, पडीया जेम पतंग ॥ ५० ॥ १७ ॥ यतः ॥ लोलेदपावक्रनिरीक्षणेन ॥ मात पिता बहु मोकले ए, जन तेडांने काज ।। प० ॥ पण गणिका जावा न दे ए, नवि लोपे तस साल ॥ १० ॥ १५ ॥ लालच नंगी विषयनी ए, उमी अतिहि अगाध ॥ प० ॥ संसारी एहमां पच्या ए, न लहे सुख निरावाध ॥ १० ॥ २० ॥ मात पिता फूरे घj ए, सुतने संना री जोर ॥ १० ॥ नव कीयां या नवें ए, श्राव्यां कर्म कठोर ॥ प० ॥ २१ ॥ वांक नहिं इहां कोनो ए, सहामो चढावी पाड ॥ १० ॥ विटल पुरुपने सोंपीयो ए, कीधां ए सुतने लाड ॥ ५० ॥ २२ ॥ खाम ख