________________
२०६
जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो. तिल नवि सांखे बोल के, वोले चडवडी रे के ॥ वो ॥ ११ ॥रीपायो । पुण्यसार, कुमार कहे इस्युं रे के ॥ कु० ॥ रे मुग्धा मुझ साथ, विवाद : करे किस्युं रे के ॥ वि० ॥ यद्यपि तुं गुणवंत, कलावंत पडवडी रे के ॥ क ॥ आखर परण्या पूंठे, पुरुष पग मोजडी रे के ॥ पु० ॥ १२ ॥ पुरुप . पनोता सार, कह्या संसारमां रे के ॥ कण ॥ दासीपरें घरकाज, करिश परिवारमा रे के ॥ क ॥ त्रटकी बोले बोल, चढावी रीपने रे के ॥च॥ कोक जाग्यविशालने, वरिश ढुं ईशने रे के ॥ व ॥ १३ ॥ तुज जेवा कंगाल, घणा जगमा फरे रे के ॥ १० ॥ मुफ जेवी गुणवंती, किमही न
आदरे रे के ॥ कि० ॥ वोल्यो ताम कुमार, वरु जो तुमने रे के ॥ व० ॥ जो करूं किंकरी तुज तो, माने मुझने रे के ॥ मा० ॥ १४ ॥ वोली चट की चम रे, मूरख गुंजवे रे के ॥ मूण् ॥ जोरें अनन्यप्रीति, दंपती केम संनवे रे के ॥ दं० ॥ थयो बहु वार विवाद, हैयाना रोषगुं रे के ॥ है ॥ कुंवर चिंते रीप ए, अवसरें पोपगुं रे के ॥अ॥१५॥जो जो बोले वोल, किहांनी किहां थइ रे के ॥ कि० ॥ विद्यावादनी वातें, वात हामें गई रे के ॥ वा० ॥ ते पुण्यसार कुमार, आव्यो निज घर जणी रे के ॥७॥ मुखपंकज थयुं म्लान, आरति मनमा घणी रे के ॥ आ ॥ १६ ॥ सूतो त्रूटी खाट, जर एकण दिशे रे के ॥ ज० ॥ शेठ पुरंदर जोजन, काज आव्या तिस्थे रे के ॥ का ॥ देखी पुत्रने सूतो, तेकाणे शून्यमां रे के ॥ ४० ॥ पूडे कारण कोण, शुं चिंतो मन्नमां रे के ॥ गुं० ॥ १७ ॥ वात कहे वत्स आज, विचार जे ताहरे रे के ॥ वि० ॥ जीवन प्राणा धार, तुं एकज माहरे रे के ॥ तुं० ॥ पूठ्युं आग्रह जोरें, तदा कहे तात जीरे के ॥ त ॥ रत्नसुंदरी परणावो, मुफ ए वातजी रे के ॥ मु० ॥ १७ ॥ रत्नसार व्यवहारी, नी ए अंगजा रे के ॥ नी ॥ ए परणावे पुष्ट, होशे महारी मजा रे के ॥ हो ॥ तात कहे सुण पुत्र, हजी तुं बाल ठे रे के ॥ ह ॥ तो हमणां शी वात, जण्यानो काल जे रे के ॥ ॥ १५ ॥ यौवन समयें तास, करेगुं विवाहलो रे के ॥ क० ॥ परणाव्या नो अम्ह, घणो वे नमाहलो रे के ॥ ५० ॥ परणवा माटें आम, थाये कां काहलो रे के ॥ था० ॥ नाग्यवती ते नारी. यश जस नाहलो रे के थ ॥ २० ॥ पुण्यसार कहे वात, न मानु ए सही रे के ॥न ॥ ते सा
in