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शश जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो. मेघरथजी ॥ आणंदा रे ॥ बंधु रमणी परिवार ॥ घणुं सुखकंदा देवरमण उद्यानमां ॥ आणं ॥ आव्यो अवनि आधार ॥ घणुं ॥ शोके रहित अशोकने ॥ आप ॥ नीचे वेठो राय ॥ ध० ॥ ता जेम चश्मा ॥ अ० ॥ तिम शोने समुदाय ॥ध ॥ २ ॥ एहवे धावीने ॥ आ० ॥ मांमधु नाटक सार ॥ध ॥ चर्म वसन आयुध ॥ आ० ॥ नाचे विस्मयकार ॥ ध० ॥३॥ ते नाचतां आवीयुं ॥ एक विमान उत्तंग ॥ध ॥ सुंदर एक नरनारीनुं ॥ आ ॥ युगल सुचंग ॥ध० ॥ ४ ॥ नारी पूढे पियु कोण ए॥धा ॥ कर रथ मनरंग ॥ ध० ॥ सुण वैताढयथी उतरे ॥ आप ॥ नयरी अलक चंग ॥ध ॥ ५॥ विद्युतरथ कुल उपन्यो ॥ आ० ॥ ए खेचर रथ ॥ध ॥ वेगवती एहनी नारजा ॥ आप ॥ धर्म करण र ॥ध ॥ ६ ॥ धातकी खंमें जिन वांदवा ॥ आ दादार दंपती ॥ ध० ॥ वांदी पाबां चलता इहां ॥ आ॥ श्री वलीयो नूप । ॥ध ॥ ७ ॥ सहसा ए केम नीपन्युं ॥ आ गयाँ र के, जिन ध० ॥ सामान्य ए नरपति नहीं ॥ आप ॥ प्रितिष, जर ७ ॥ विमान तपी खलना दुई। आ० ॥ एहन सुमन में सु नूत रूप कीधा घणां ॥ आप ॥ नाटक करवा हर अनर राणी इण पूरवें ॥ आ० ॥ [ की, पियु पुण्य । वालिकाचित क पामीयो ॥ आ० ॥ कहो गुणरया अगण्य ॥
धारवर यया । पुरी॥ या ॥ कुलपुत्रक राजगुप्त ॥ ध० ॥ शंखिका दुवा ॥ २४ । आप ॥ निर्धनतायें विलुप्त ॥ध० ॥ ११ ॥ करे वतया ॥ एए ॥ था ॥ एक दिन काटने. 'ध ॥ गयां बन॥ १५ ॥ कर ॥ या ॥ तिहां दी Edurg ॥ १२ ॥ ममवा हो म श्रागलें ॥था० ॥ कहे मु.. -
मारणायुध हो ज याण ॥ दे मनोवांछित शर्म ॥
पोपवीने अनि था ॥ प्रनु कहाँ कोई उपाय:
के,ते से था० ॥ करो करुणा सुपसाय । ॥ या ॥ तप वत्रीश कल्याण ॥ ध० ॥ चार्थी, अहम दोय गुणवाणि ॥ ५० ॥ १५ ॥ गुरुदत्त
ए ॥ पूद्र ॥ जे एहवी झद्धिक नृप कहे सिंहपुर नारी तेहनी । परघरनी चाय न दुःखीयां वाय
नमि वेतन राध्यो सुरत "पती करा
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