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. श्री शांतिनाथनो रास खंम पाचमो. २५ + पा० ॥ पारणे एक दिन साध.॥ ध० ॥ प्रारक अन्न ने पाणीयें ॥या॥ - पडिलान्यो निरावाध ॥ ५० ॥ १६ ॥ कालें ग्रहे अणगारता ॥ श्रा० ॥ ; नारी ने ते नाह ॥ध ॥ राजगुप्त गुरुयी सुरणे ॥ आ० ॥ तप अधिकार - उत्साह ॥ ध० ॥१७॥ तप कह्या विविध प्रकारनां ॥ आ० ॥ बोल्यां शक्ति = विशेप ॥ध ॥ पण आंविल वर्धमाननो ॥ आ० ॥ महिमा अधिको रेष = ॥ध० ॥ १७॥ एकेक वधते आंबिलें ॥आ ॥ शतसंख्या लगे सार - ॥ध ॥ उलीने बेहडे करे ॥ आप ॥ पारणुं निरतिचार ॥ध०॥ १५॥ . उती उलीने बेहडे । आ० ॥ एकेक कह्यो उपवास ॥ध० ॥ मन चढते अंतर विना ॥ आ॥ नहिंतर पारण खास ॥ध ॥ २० ॥ सहस पंच यांविल कह्यां ॥ आप ॥ तेम उपरें पंचास ॥ध० ॥ शत उपवास उली तणा ॥था ॥ ए तप कीजें नन्नास ॥ध ॥ २१ ॥ चौद वरस त्रण्य मासनी ॥ था ॥ नपरें दिन वलि वीश ॥ ध०॥मान कह्यु ए तप तणुं ॥ आ॥ सूत्रमाहे जगदीश ॥ध ॥ २२ ॥ राजगुप्त ऋषि आदरे ॥ आ० ॥ ए तप आनंद पूर ॥ध० ॥ शमतारसमा जीलतो ॥ था ॥ दिन दिन चढते नूर ॥ध० ॥२३॥ काल करी सुर जपन्यो ॥ आ० ॥ ते पंचम सुरलोक ॥ध ॥ तिहाथी चवी सिंहस्थ थयो ॥ आ ॥ ण नवें ए गतशोक ॥ध ॥ २४ ॥ शंखिका पण तिहां अवतरी ॥ था ॥ वेगवती थइ नारि ॥ ५० ॥ सिंहरथने वनन घj ॥ आ० ॥ पूरवनेह विचार ॥ ध० ॥ २५ ॥ मेघरथना मुखथी सुणी ॥ आ ॥ निज पूरव
अवदात ॥ध ॥ प्रतिज्यो सिंहस्थ तदा ॥ आ ॥ धन धन उत्तम जति ॥ ध० ॥ २६ ॥ मेघरयने वंदी वल्यो ॥धा ॥ सिंहरय निजघर रथ वि ॥ध ॥ तनयने राज्य वेसारिने ॥ आ० ॥ ग्रहे संयम समनाव सर ० ॥ २७ ॥ श्रीधनरथ जिनवरकनें ॥ श्रा० ॥ तप तपियां यसराल संयम ती! कर्म खपी केवल लही ॥ ॥ मुक्ति गया ततकाल ॥ध ॥ ए॥नव्य जीव प्ररथ नृप श्राविया ॥ प्रा० ॥ वनडूंती निज धाम ॥ धo वे,नयरी घुमरिगिणं नती ॥ या ॥ करे गुन धर्मनां काम ॥ध ॥ए ।
पंचमे ॥ धा० ॥ जव दशमो अधिकार ॥ध ॥ रामवि ॥ वाडी फूलीत आ॥ धागल बहु विस्तार ॥ध०॥ ३० ॥१३॥५॥