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जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो.
इज नर दीव के ॥ २० ॥ १७ ॥ रंगशूर मन चिंतवे जी, हा हा वालक बुद्धि ॥ वि वांके विनता तजी जी, सवल थयो निर्बुद्धि के ॥ २० ॥ १७ ॥ रोपशम्योमन मांहिलो जी, थयो रमणी अनुकूल ॥ चूक्यो सवल अजाणते जी में कीधुं प्रतिकूल के ॥ २० ॥ १५ ॥ इणमां नांग्यां रूपणां जी, जामिनी ने जरतार ॥ सुख बिलसे संसारनां जी, सफल गणे अवतार के ॥ २० ॥ २० ॥ रुक्मिणी रहे कर जोडीने जी, नक्ति करे भरपूर ॥ तुं वत्स मारे वालहो जी, तुक ला बला रहो दूर के ॥ २० ॥ २१ ॥ पण न करे वेसासडोजी, माय तणी जे शोक्य ॥ जो धीरुं हं एहने जी, तो फल पामुं रोक के ॥ २० ॥ २२ ॥ जोजन करवाने समे जी, वेसे जनकनी साथ ॥ पण मरती ते अहोनिशें जी, राखे सुतने हाथ के ॥ २० ॥२३॥ चोथे खंमें त्रीशमी जी, ढाल कही मन रंग ॥ हवे श्रोता निसुणो तुम्हें जी, यागल वहु उबरंग के ॥ २० ॥ २४ ॥ ८८ ॥ ३५ ॥ दोहा ॥
|| रोहक सायें एकदा, रंगशूर निज काम ॥ गयो ओली नयरीयें, जोवा सरिखुं गम ॥ १ ॥ चोरासी चहुटां जलां, दीपे प्रति मंमाण ॥ देवजुवन रलियामणां निरखे तेह सुजाण ॥ २ ॥ प्रातट वेसारीने, रोहक ने रंगशूर ॥ काज निमित्तें नयरमां, पहोता यानंदपूर || ३ || बुद्धि मंत रोहो तदा, नगरी तणुं स्वरूप ॥ श्रालेखे निज कलयी, दिप्रातदें अनूप ॥ ४ ॥ तस पोजे या पोलीयो, कनो रहियो श्राप ॥ रेणुमयी नगरी जोइ, मनमां नहिं संताप ॥ ५ ॥
॥ ढाल एकत्रीशमी ॥
॥ प्राख्याननी देशी ॥ तिल व्यवसर नयरीनो नरपति, चाव्यो अल्प परिवारें ॥ यश्व उपर चढियो अलवेसर, जोतो ख्याल तेवारें ॥ १ ॥ नयरी अवंती जिहां व्यालेखी, तिहां दोडीने घ्यावे ॥ तव रोहो यावीने प्राडो, नरपतिने समजावे ॥ २ ॥ हा हा किहां जाय ले ध सीयो, कां नगरीने जांजे ॥ बाल तुरंगम वहेलो पाठो गइ करूं वं लाजें ॥ ३ ॥ चित्त चमक्यो नरपति इम बोले, बाग तुरंगम केरी ॥ जो साहे तो निरखी जोवं नयरि उणि नजेरी ॥ ४ ॥ ते कहे हुं नहिं ताद्गे चाकर, जा चाव्यां इस वादें || एवं जे खाइजें जगमां, ते मीठाई माटें ॥ ५॥
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