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श्री शांतिनायनो रास खंग चौथो.
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खुशी यई नृपति एम पूर्व, व्यहो केहनो ए जावो ॥ सेवक कहे रंगशूर arat, a सुन रोक गावो ॥ ६ ॥ वाले वेशे बहु बुद्धिमंतो, सक कलानां जाता | बात गुणी नरपति मनमांहे पायो सनी याता || ३ || पैर थावी नरपति एम चिंते, बुद्धिपरीक्षा कीजें ॥ जो मन माने तो रोकने, मंत्रीवरपद दीजें ॥ ८ ॥ कवाड एक नर बातें, तिए गामें राजायें || बहु इच्यें तुम एक इव्य केरो, करो प्रासादलाई |||||| गाम लोक मनियां सह लां बात विचार एवंम ॥ जो नवि कहेवा शुं उत्तर मानशे नृपति मो ॥ १० ॥ पण कोड़ने मति एव न सूजे, चिंतातुर थ रहियां ॥ तो रोहक कहे जनकने, भूख न जाये सभी था ॥ ११ ॥ कहे रंग पढख बस मां विम नृप यादेश ॥ थायों से तम चिंता महोटी, कहे रोहक कहां लेग ॥ १२ ॥ वात कही सह एव वो एहमांहे गुं गूदा ॥ कठो जाई जोजन काजें, यता दिदा ॥ १३ ॥ पत्रे कहीश हुं उत्तर एहनी, सहु नोजन कर व्याव्या ॥ हापा तिर्णे नृपनरने, सह साखे समजाव्या ॥ १४ ॥ जा कलेजे तुक नरपति व्यागल, महाटी शिक्षा इहां एक ॥ नृपयोग्य मंदिर निपजणे, इव्य को सुत्रिये ॥ १५ ॥ हिरख्यां सहुये नृप घागल, जति सेवक नांगो ॥ कहे राजेश्वर एक प्रत्युत्तर, तुमने केणे ॥ १५ ॥ दीधी उत्तर वालक, बानी नृप हख्यो ॥ दान में, इस नाते ए परस्यां ॥ १३ ॥ एक दिवस नृप एक वस्तने, मेदीने नजावे ॥ सावजी ए चारे ने पाणी. तन मन न पावे ॥१७॥ पुत्रे मना कहे कपास हमें जतन की एसा ॥ १५ ॥ ने यादे प्रमाण कखार्थी, राय म जाणो | एक दिन एक कुटने सूरी, करे नृपति राणो ॥ २० ॥ गुहला र म परे ॥ न
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