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श्री शांतिनायनो रास खं पांचमो.
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|| ढाल पन्नीशमी ॥
॥ शारद बुविदायी ॥ ए देशी ॥ कहे ते देवनारी, सांनल साहस धीर ॥ जननीना जाया, गिरुधा गुण गंभीर || पावन पुरुषोत्तम, अतु लीवल वढवीर ॥ यह सामीनी वेदन, हजीय न श्राव्यो तीर ॥ छूटक ॥ तीर न व्याव्यो एकए देगें, छम्ह स्वामिनी गइ हूती ॥ तिहां कोई पुरुष खड्ग प्रहारें, तेहने घणुं विती ॥ बांह ती पीडा बहुतेरी, केमे करार न थाय ॥ पीडा तेह निवारण काजें, नित्य जलथी सींचाय ॥ १ ॥ लिए कारण जलने, वहियें ए सुंदर जाए || हजी वेदन न शमी व ए कर्म विन्नाय ॥ वत्सराज विमासी, बोले एपिपरें वाली ॥ केम निज पीडाने, निवारण तेह जाण ॥ ० ॥ तेह जाण य केम बेटी, कहे देवी तु साधुं ॥ ते प्रहार दायक अंगरक्षक, देवतणुं बल जानुं ॥ तस प्रजावें एवेदन न समे, मत मानेजो काचुं ॥ देवप्रभावय की पण त्र्यधिको मानव महिमा राखुं ॥ २ ॥ वली औषधि युगल, हुतुं एहने कर एक ॥ सप्रनाव मनोहर, दीतुं म्हें सुविवेक || व्यंतरपति दधुं तुष्ट यईने ब्रेक ॥ फल देवी व्यागल, जांख्युं तेणें व्यतिरेक ॥ ऋ० ॥ व्यतिरेकें एक जग मोहे, वीजी बहु गुणकारी ॥ परघातोङ्गव पीड निवा रण, ए विदुपधि सार ॥ तेह पडी ख जिहां ताडी, श्रम स्वामि नी ःख पाइ ॥ धि पाडी लाज गमाडी, कीधी कर्म कमाई ॥ ३ ॥ वत्सराज पर्यषे, हुं हुं मानुष्य वैद्य | टालुं तस वेदन, एक साहित्यमांदे तय ॥ पशुं सुकदेशे, बोजे देवी चचन्न ॥ मन चिंतित पामीश, सां जल पुरुष रतन्न ॥०॥ पुरुषरतन्न गुणी मुक बाली, हुं जाउं बजाणी ॥ मुक सामिनी पनी था, इहां रहेजां गुणखाणी ॥ प्राची बात कहे सामने. ते कडी लावो ॥ दासी थावी कहे सुप मानव, तुमें मुकतायें श्रावो || | || मारगमां नांवे, स्वामिनी अंग करार ॥ यये ते got, an aपर निरधार ॥ तव मागजे व्यापो बुक कन्यायुग सार ॥ प्रासाद परें, जे वे तुमचे व्याधार ॥ ० ॥ तुम प्राचीन रूपे एक सपणो ॥ चिंतित नामें जे पहोंचाटे, नतणमां बजा यो || चली तुम पाथवे जे वाह, कामिक सार | एक पक मनोदर मुक ए, थापो वानां चार ॥ ५ ॥ एम शीव सायें, खेड़