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श्री शांतिनायनो रास खंमत्रीजो. बदु मान ॥ ३ ॥ गुणवंती गोरी निपुण, चाले गजगति मत्त ॥ मानवती पण कंथने, चाले धनुदिन चित्त ॥ ४ ॥ यजुक्तं ॥ दोहो ॥ माणिणी तित माण करे, जीनत कंत सुहाय ॥ जे साखीणी वाणही, तोहि पहेरीजें पाय॥१॥ पूर्व दोहा॥ एम सागर कहपसमी,सुखमां वाहेकाला पण ते सबली चोरटी, पियुचित्त चोरणहार ॥ ५ ॥ सहि ए चोर ते मानियें, जे दुवे चित्तह चोर ॥ धण कण कंचन जे हरे, चोर नहिं ते ढोर ॥ ६ ॥ तेहनी कूखें ऊपन्यो, पद्मकेसर अनिधान ॥ राजकुमर रलीया मणो, सोहे मुगुणनिधान ॥ ७ ॥
॥ढालत्रीजी॥ अंबरीयोने दूजे रे नाटियाणी राणी वड चूवे ॥ ए देशी ॥ एक दिन योगें हो राजेश्वर राणीमहोलमें, वेठा रंग विलास ॥ केश समारे हो सुकुलिणी निज बालम तणा, धरती हियडे उल्लास ॥ १ ॥ जगमाहे जो जो हो जोरावर धाणा मोदनी ॥ ए श्रांकपी । दिलनर दंपती दोय ॥ रंगे रमाडे हो न जगाडे सूता जीवने, नाखे मुर्गति सोय ॥ ज० ॥ ५ ॥ पत्ती निहाली हो एक नामा नांखे नूपने, स्वामी दूत निहाल ॥ धान्यो अलवेसर हो आजुनो ए उतावलो, जोयुं चिद्धं दिशे लाल ॥ ज० ॥ ३ ॥ दूत को न यावे हो अलवेली एणे मंदिरे, चिटुं पामें रे जमार ॥ रहिया के चोकी दो लाउने माहरा, हाय ग्रही दीयार ! जए ॥ ४ ॥ हांसं, न कीजें हो रंगीली राणी रंगमें, उपजावी मुफ ब्रांति ।। तुं जो निदाले दो,तो मुज नजरें केम श्रावे नहिं, सबली कानुरुवात ॥ ज० ॥ ५ ॥ हेजें दरिगादी हो दांगीली दरखी न कहे. पियु गुं बोत्याजी बोल ॥ कदिये तुम पागल दो बालमजी में कौधी नहि, कूडी दासी निदो लज०॥६॥ गय विमासे हो तमाने बान फिनी कहे तब राणी गुन ग॥ लाई देखायों दो मननो संशय बारवा, शिरनो उज्ज्वल कंग ॥ ज० ॥ ७ ॥ दून जरानो को न्वामीजी प प्राव्यो नही, कदेवा करनी पान । सुशियार रहेजा हा ९ श्रावं वं उतारती, सुणि नृप चिंते विमाप्ति ॥ ज० ॥ 5 ॥ थिए धिक् मुगने दी में पूर्वजनि न पादरी,
लोनीमादजाद ।। पलीबांधी पहेला ही जे शधि मूकीने नीमा, शु नां शरे जीह ॥ ७० ॥ गजाधिनयनि' । दाग अपने न