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श्री शांतिनाटयनो रास खंम बहो. ३०३ न कहावे ।। देवों जगशुरु झानके दरीया, मुहसे न बोने गंजीरिम नरि या ॥ १२ ॥ बहुत आमंबर होवे दो जिनको, मत जाणो परमारथ उन को ॥ नहिं सोवन ध्वनि तेदवी वजावे, जेहवी हो कांस्यके पात्रमें यावे ॥१३॥ काल त्रिहूंको झाता हो स्वामी, नहिं जिनकी प्रनुतामांहे खामी। अविनय एद दुवे जिनवरको, आव्यो वेश लइ हिजबरको ॥ १४ ॥ अनुकुं वेगवे सिंहासन सोई, देखी सवे मन अचरिज हो । पाठक पागल रह्यो कर जोडी, मन करे मद मत्सर मोडी ॥ १५ ॥ मन संदेह टल्यो तव साचो, पातक जाएयु ए पंमित पाठो ॥ पाउ पडे मन मान निवारी, तुम हो बडे जगगुरु उपकारी ॥ १६ ॥ इं नमी निजस्थानक जावे, प्रजुजी फरि निजमंदिर श्रावे ॥ देखो जाग गंजीर ए केसे, दीनदयाल होवे जग ऐसे ॥ १७ ॥ अनुक्रमें योवन पाम्या दो सांई, रुपकला अधिकी चतुराई ॥ बरस पंचवीश सहस वय आये, तब प्रनुकुं लेइ गज्य बनाये ॥ १७ ॥ परणाचे प्रनुकुं बढ़तेरी, नृपकन्या गुणरुप जलेरी ॥ सकल, झं तेउरमां रतिकारी, नामें यशोमती राणी सारी ॥ १ ॥ प्रनु विलने तिण सायें जोगा, सहु मलिया मनोवांछित योगा | चाले पद्मिनी पतिने हो ठंदें, घर घर बग्ते हो अति श्रानंदे ॥२०॥ व खंमें दो पंचमी दाल, गम कवि कहे अति उजमाल ॥ धागल सांजलजो वे लोका, बाघोज गमांडे पुण्यशलोका ॥२१॥ सर्वगाथा ॥ १४॥ लोक तथा गाया ॥१॥
॥दोहा सोरठी ॥ ॥ दवे हदग्थनो जीव. सरवाग्ध सिध्या चवी ॥ पुराण यायु अ नीच, श्रावीने तिदां जपजे ॥ १ ॥ यगोमतीनी कृग्व. गुनवेलायें श्रय तग्यो । पूर्ण समय गनख. चक सुपन चित जएयो ॥ २ ॥ कन्या महान्लव सार, नवरमांद बद हर्षा ॥ "चक्रायुध" गाणधार. नाम व्यु नरपति मही ॥३॥ सुत वाधे श्रीकार. रुप कक्षा गुण मानतो । जे गम सुरतम मार, नरनारी मन मोहतो ॥ ॥ जीवण कला विचार, नीशाले में पारच्यो । पत्रीक्षण धार. मकजगार ननयों ॥ ।। ॥ ॥ यौवनपयें कुमार, नृपमन्या गणानीयो ! म गुण जिनमार, . सुग्ध चिलन नमारनां ५ ६ ॥