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३० जैनकथा रत्नकोप नाग आठमो. सवि बंधा विसारी, नित्य प्रजुगुणने समरे रे ॥ ६ ॥ २७ ॥ बडे खंमें ढाल ए चोथी, प्रनु जायो जगस्वामी ॥ रामविजय कहे ए प्रनुजीने, हुं प्रणमुं शिर नामी रे ॥ हा ॥ २९ ॥ सर्वगाथा ॥१२४॥ श्लोक ॥ १ ॥
॥दोहा॥ ॥ गिरिकंदरचंपक परें, वीज तणो जिम चंद ॥ प्रनु वाधे मन मोह तो, सदुजन नयनानंद ॥ १ ॥ हर्षे दुलरावे रंगयुं, अचिरा प्रेम पमूर ॥ रोम रोम तन उन्नस्युं, निरखी सुत मुखनूर ॥ २ ॥
॥ ढाल पांचमी॥ ॥ माय कहे मेरी बगनां मगनां ॥ ए देशी ॥ कहे सुतने हो एम अ चिरा माता, तुज आवे मुफ थइ सुखशाता॥मुख दी गयां पातक धूजी, तुम पूजे हुँ पण सुरें पूजी ॥ १ ॥ तुं मुफ प्राणतणो अाधार, तुऊ उपर वारी वार हजार॥सुण मुफ लाडकडा सुत मीठा, पूरव पुण्ये तुफ मुख दीठां. ॥ ॥ लाम लमावे हो अपणी रे माडी, नवपल्लव दुइ सुतगुण वाडी ॥ हाथे जडाव सोवननी हो कमली,अंगें वनी करवाफ अंगडली ॥३॥ पहे राव्यांकानें गुचि मोती,तृप्ति न पामे हो मुखडु जोतीरामणि माणक मोती की दो टोपी, हर्पगुं ले सुतशिर आरोपी ॥४॥ कंठे हो तावित सोवन केरां, पहेरावे अचिराजी जलेरां ॥ कामणगारो ने वलि शणगायो, ठमक तमक चाले लागे हो प्यारो ॥ ५॥ मुख मधुरी वोले सुत वाणी, चिरंजीयो कहे अचिराजी राणी ॥ सुर वालकरूपें थइ यावे, रागें हो शांति कुमर कुं खेलावे ॥ ६ ॥ एगीपरें वाधे हो प्रच सोजागी, सदु कोश्ने जोवा रढ लागी ॥ आवे सनामांहे बापके आगे, सगुकोई ऊठी के पाउ लागे ॥ ७ ॥ आवो पधारो हमारे हो स्वामी, हो त्रिदुजगके अंतर्यामी॥ तुम हो जगत्सल नपकारी, तुम सूरत लागत हम प्यारी ॥ ७ ॥ पाठ वरस प्रनुकुं नये जागी, तब वोले मावित्र गुं वाणी ॥ सुत निशाल वीजें हो सारो, शास्त्र जणावण मोहनगारो ॥ ॥ नरपति उत्सव मां हो जारी, धवल मंगल गाये सोहव नारी ॥ तनु नपरा जूपित ठवी सारी, प्रल कीनी गजकी असवारी ॥ १० ॥ बदु यावर साथें हो थावे, पाठक मनमांहे आनंद पावे ॥ण अवसरें चव्यां आसन इंदा, खबर दुई देख्यो ज्ञानदिणंदा ॥ ११ ॥ प्रनुकुंनी निशाल पावे, मोह महाबलवा