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श्री शांतिनायनो रास खंग चोथो.
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वासरस्य शूरमांका निलाषिणाम् || त्रिगुणाधिकवर्षाणां नैव देया एकं न्यका ॥ १ ॥ पूर्वढाल ॥ रत्नसार कहे तुं सही रे. पुत्रीयें धाखो चित्त ॥ त्र्यवरनुं नाम न मांजरे ॥ ० ॥ एतो मानो बात एमित्त ॥ प० ॥ ए ॥ यतः ॥ श निरूपैः सा प्रतिा इःखसागरे ॥ या दत्ता हृदयानिष्ट, रमणस्य कुलांगना ॥ २ ॥ पूर्वदा ॥ चाययी तेणें मानीयुं रे, सबल नावीनो योग ॥ माह्या रे महापण करे रे | मा० ॥ एतो घ्यावी मजे ते योग ॥ पिo ॥ १० ॥ उत्सव की प्रति घणो रे, रत्नसारे तेलि वार || परणावी निज पुत्रिका रे ॥ प० ॥ ए तो गुणसुंदरने सार ॥ ११ ॥ सुपो जवि, नियति बडी संसार || मत करजो को प्रकार || सु० ॥ तमें बोलो बोल विचारि ॥ ० ॥ इहां न चले हो कोई उपचार || सु० || एहना व्यवर सखाइ चार ॥ सुनिना एत्रांकणी ॥ पुष्यसार ते जासीने रे, गयो कुलदेवी पास ॥ मात जुई ए गुं पयुं रे ॥ मा० ॥ मुफ महोटी हती तुक व्याय ॥ सु ॥ १२ ॥ दुवे महारे नहिं जीववुं रे, शिर छेदी दीयुं तुक || बोल गय हवे गुंर रे || वो० ॥ मुने कांइ पढे नहिं सुज ॥ सु ॥१३॥ देवी कहे कां व्याकलो रे तुं वत्स याचे एम ॥ रत्नसुंदरीगुं ते कहे रे ॥ रत्न० ॥ मुक्त चिंतित न हुई प्रेम ॥ ० ॥ १४॥ देवी कहे दीधी जिका रे, तेहमां नहिं संदेह ॥ दिए नावी ताहरी रे ॥ सा मम कर मन साहस एह ||१५|| पुण्यसार कहे नवि घंटे में संग्रहवी परनारि ॥ परणी एं सुंदरे रे || प० ॥ नहिं इहां कोई विचार || सु० ॥ १६ ॥ देवी कहे जी एवं रे, सुं समजे नहीं शान ॥ ए नही तहारी बघना रे ॥ || सुक नाख दीये एम ज्ञान || सु० ॥ १७ ॥ माये चटावीने दे नीरे, aaji मा || मन चिंते पुष्पसारजी रे ॥ न० ॥ शुक फलगे मनोरच सार ॥ सु ॥ १८ ॥ यये पंचमी है. दाल एक चिन ॥ गम कहें पीयु नारीनी रे ॥ ग० ॥ हये परगट दो प्रीति ॥ ० ॥१॥ सर्वगाया ॥३३॥ लोक तथा गाया ||२|
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|| ZTET || सुंदरीच चिंतये परगट न
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|| विग्य में कोन जात ॥ १ ॥ mafia टीवी, मेन
नाय ॥ न समाये टासी संपर च ॥ २ ॥ पुचादिर