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श्री शांतिनायनो रास खंग बठो.
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वेसी रहे नहिं होजी, सुपो: मुफ मनमांहे एम ॥ सु० ॥ २६ ॥ नाही नाही हो निर्मल नीरगुं होजी, चंदन चर्चित अंग || पहेरी पहेरी हो वसन सोहामणां होजी, भूषण नूपित चंग ॥ सु० ॥ २७ ॥ मांझ्या मां मया हो थाल सोहामा होजी, कनक कचोलां रे मांहे || पिरसुं पिरसुं मुसर जेठ कंतने होजी, नोजन मनने उत्साह || सु० ॥ २० ॥ पोपी पोपी हो गृहनन सर्वने होजी, देइ दीनादिक दान || केहें कैडे हो निकुत्सित जे रधुं होजी, प्रशन ने वली पान ॥ २५ ॥ जमतां ज मतां ते जोजन मुज मनें होजी, होवे हर्प अपार || नांख्यो नांख्यो हो व्यनिप्राय आपणो होजी, शीलवती तिए वार ॥ सु०॥३०॥ निसुणी निसु पी हो कान मांगी करी होजी, सुसरे सघली रे वात || त्रिदु जी त्रिदुजली फरि बोले तिहां होजी, नवली ताहरी रे धात || सु० ॥ ३१ ॥ श्रापण
पण कौटुंबिक घरें होजी, प्रशनादिक रे फुलंन ॥ वसन वसनप्रानृपण चातडी होजी, करवी एह प्रचंन ॥ सु० ॥ ३२ ॥ करिये करिये मनोरथ एहवो होजी, जेहत्र्यापणुं नाग्य || कर कर हो कपेण कर्मनुं होजी, किहांथी एह मिले लाग ॥ सु० ॥ ३३ ॥ चिंते चिंते महिपाल मनमां होजी, मुऊ घर नारी कुहाड ॥ जोजन जोजन वढूने छापे नहिं होनी, न सरे मननी रुंहाडि || सु ॥ ३४ ॥ घर जइ घर जड़ने निज नारीने होजी, समजाविश सुविचार ॥ पृरिश पूरिश ए त्रिदु बहूना दोजी, मन चिं तित रे याहार ॥ सु० ॥ ३५ ॥ बोले बोले समंजस बोलडा होजी, चोथी वहू कम जात || केवल केवल एहने पूर्खु हांजी, कुल्लित नंदन जात ॥ ० ॥ ३६ ॥ विरमी विरमी हो वृद्धि गइ क्षेत्रमां होजी, बहू थर ते गुणवंत ॥ यावी याची महिपाल नारीने होजी, वान कही सवि नंत || सु० ॥ ३७ ॥ कहिने कहिनँ गयो निज क्षेत्रमा दोजी, जुनो नावीस बंध ॥ न तेन टले हो टालो कोइनो हो जी जी करें कोटि प्रबंध || सुनाश्ता संग म ब दाल ए नणी दोजी, एकतालीशमी सार ॥ राम राम कहे जग दोहिला होजी, गुणना जाणणहार ॥३१६माणा ॥ दोहा ॥
॥ बर जब वेला घई, तब यावी निज घेर | सालये पहेली करो, ते नोजननी पेर ॥ १ ॥ जमवा बेलारी नवे सदर ||
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