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जैनकथा रत्नकोप नाग आठमो.
॥ कुमरजी ॥ मंदिर याव्या माहरे, महेर करी माहाराज || कु० ॥ १ ॥ वात कहो मुऊ मन तणी ॥ ए यांकणी ॥ रातें याव्या तुमें रंगगुं, बल फोरवि श्रावास || कु०॥ कंकण लीधुं माहरु, काम कीधुं एखास ॥ कुणाचा ॥२॥ मत जाणो नंघी हती, हुं कपटें रही एम ॥ कु० ॥ पण परमंदिर पेशी ने, काम कर ए के || कु० ॥ वा० ॥ ३ ॥ जड़े में तुमनें दियो, कूडो एह कलंक | कु०॥ दोप सह ए माहरो, तु सुधी निकलंक ॥ रसीली ॥ वा० ॥४॥ राजा यापो तुऊ जणी, महारे हाथ सुजाण ॥ रसीली ॥ जो तुऊने गमतुं होवे, तो लेइ जानं गण ॥ र० ॥ वा० ॥ ५ ॥ जो न रुचे तो तुमनें, करूं निकलंक सनूर ॥ २० ॥ कहो मुऊ ए वेदु वातमां, गमती पुण्यपसूर ॥ २० ॥ वा० ॥ ६ ॥ सांगली कन्या चिंतवे, तजुण रंजी तोर ॥ २० ॥ प्रेम कृत्रिम एहनो, मुफ ऊपर प्रति जोर ॥ २० ॥ वा ॥ ७ ॥ अंगीकरीयें दुःखने, पण नवि मुकुं एह ॥ २० ॥ राजलान सोह जो कह्यो, डुलहो साजन नेह ॥ २० ॥ वा० ॥ ८ ॥ वलतुं बोले सुंदरी, सुनग सुपो यरदास || कु० ॥ प्राण ए प्राधीन ताहरे, जिहां तुं तिहां मुक वास || कु० ॥ वा० ॥ ए ॥ सिद्ध मनोरथ ते कहे, न ए अवधार ॥ २० ॥ तुक शिर जल हं यदा, तब मूके फिटकार || २० || वा० ॥ १० ॥ ते पण कुमरीयें यादयुं, हो यहो मोहनी बंध | कु० ॥ नेह सहे एम दुःखडा, जगमां ए महोटो धंध || कु० ॥ वा ॥ ११ ॥ रायसमीपें यवीयो, कहे कुमरी मुऊ साध्य || राजनजी ॥ कहे नृप हवे कतावला, काढो एह असाध्य ॥ साजनजी ॥ चा० ॥ १२ ॥ वाहन खाणो हवं, जाय निशा परदेश | रा० ॥ जो बचें सूरज कगशे, तो न्यावशे फरि देश || रा० ॥ वा० ॥ १३ ॥ राजा जय पास्यो घणों, वायुवेगा इ नाम || रा० ॥ जातीजी वडवा दिये, सवारीने काम ॥ रा० ॥ वा ॥ १४ ॥ संध्या समये नृपसुता, त्राणी को जानि ॥ रा० ॥ नृपत्र्यादेों सेवकें, सोंपी तेहने तत्काल || रा० ॥ बा० ॥ १५ ॥ सरशव वांटे तेहने, सामो करे फिटकार || २० || जय पायो नरवर तहां, भूजे थंग अपार ॥ २० ॥ वा ॥ १६ ॥ गाढसरे ही rिai, सायें शांत स्वभाव ॥ २० ॥ मंत्रशक्ति को थाकरी, सर्वलो एहनो प्रभाव ॥ २० ॥ वा० ॥ १७ ॥ ज्ञान करे राजा तिहां, एह न यचली
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