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១០០ जैनकथा रत्नकोप नाग आग्मो. मुगुण निधान ॥ श्रम विद्या परजावथी, तुम्हें नतायुं तस मान ॥ होगा । ११ ॥ तुमें खोटुं कर्तुं साहिबा जी, अमने देखाडी दृष्टि ॥ कामकशे ए राजियो, करशे तुमने ए अनिष्ट ॥ हो ॥ १२ ॥ पण स्वामी मत धी रजो जी, किसिय न करशो चिंत ॥ अहि वश करवो सोहिलो, पण राय न होवे मित्त ॥ हो ॥ १३ ॥ यमुक्तं ॥ काके शौचं द्यूतकारेषु सत्यं,सर्प दांतिः स्त्रीषु कामोपशांतिः ॥ क्लीवे धैर्य मद्यपे तत्त्वचिंता, राजा मित्रं केन दृष्टं श्रुतं वा ॥ ४ ॥ पूर्वढाल ॥ हवे एक दिन ते मंत्रीशुं जी, राय करे आलोच ॥ काज न सीम्युं आपणुं, सामो नपजाव्यो शोच ॥ हो ॥ १४ ॥ सिंह गयो मुफ काजनो जी, रह्यो वैरी वत्सराज ॥ कहो मंत्री ए झुं थयुं, न थयुं का चिंतित काज ॥ हो ॥ १५ ॥ पण तुं मित्र जो माहरे जी, नहिं मुज उर्लन काय ॥ जेहने मित्र महोदधि, सुल जा तस लहे। थाय ॥ हो ॥ १६ ॥ सचिव कहे वाघण तणुं जी, दूध मगावो स्वामि ॥ मानधनी ए मानो, सहेजें सरशे ए काम ॥ हो ॥ १७ ॥ दरवारे वत्स आवीयो जी, कृत्य कर्तुं नृप एह ॥ करी प्रणाम पाबो वट्यो, आव्यो चिंतातुर गेह ॥ हो ॥ १७ ॥ नारी कहे तुमने दीयो जी, वाघरा मुग्धादेश ॥ चित्तमां एहनी शोचना, शी शोचो बो प्राणे श ॥ हो ॥ १५ ॥ कुमर कहे तमें केम लही जी, घर वे एह वात ॥ स्वामी अमें अंतरिक्ष थइ, नित्य यावं तुमारी संघात ॥ हो । २० ॥ स्वामी अम्हें जाएयु हतुं जी, करशे ए तुमझुं कूड ॥ पण नि श्चय पियु जाणजो, पडशे एहने मुख धूड ॥ हो० ॥ २१ ॥ कहेण सुणो अमचं तुमें जी, दैवत तुरगारूढ ॥ अटवीमां जा तुमें, वे एक देवी तिहां गूढ ॥ हो ॥ २२ ॥ माता अमारी देवता जी, तेहनी सखी ते देवी ॥ तुरगथी उलखो सही, करो तुमची बदु सेव ॥ हो० ॥ २३ ॥ कहेजो कारिज तेहने जी, थाशे वाघण रूप ॥ तुम साथें सही यावशे, देवीनां अकल स्वरूप ॥ हो० ॥ २४॥ याणी रायने सोंपजो जी, वधशे तुमारी लाज ॥ चढी तुरंगें चाव्यो वही, रमणी वयणें वत्स राज ॥ हो ॥ २५ ॥ अटवीमांहे मूकीयो जी, जिहां देवीनुं नाम ॥ दय अहिनाणे उजवी, कीधुं तस चिंतित काम ॥ हो ॥ २६ ॥ वा घण या साथें चली जी, थावी नयरीमकार ॥ कान साहीने लावीयो