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जैनकथा रत्नकोप नाग आठमो. ते पौधयाराधतां, सहियें वांनित सर्व ॥२॥ प्रथम पोपट पाहारनो, देश सर्व दोय नेद ॥ चोविहार निवी प्रमुख,तपथी कह्यो गतवेद ॥३॥ वीजो देह - सत्कारनो, सर्वदेशथी जोय ॥ ब्रह्मचर्य पौषध तिमज, अव्यापार तिम होय ॥ ४ ॥ पंच अतिचार एहना, व| चतुर सुजाण ॥ नाम कहे प्रनु तेहनां,शांतिनाथ नगवान ॥ ५ ॥ यत्सूत्रं ॥ अप्पडिलेहिय उप्पडिले हिय सिजा संथारए ॥१॥ अप्पमङिय उप्पमडिय सिझा संथारए । २॥ अप्पडिले हिय उप्पडिलेहिय वचारपासवणनमी ॥३॥ अप्पमडिय सुप्पमडिय उच्चारपासवपतमी ॥४॥ पोसहोववासस्त सम्म अण्णु पालगया ॥ ५॥ पूर्वदोहा ॥ ए व्रत पालतां जलां, सफल होय दिन रात ॥ श्रावक साधु जेहवो,निर्मल गुण अवदात ॥ ६ ॥ यक्तं ॥ सामा यिय पोसहसं, वियस्त जीवस्त जाइ जो कालो ॥ सो सफलो वोधनो, सेतो संसारफलहेक ॥ १ ॥ए व्रत उपरें जिन कहे, जिनचंश्नो दृष्टांत ॥ चक्रायुध नृप सांजले, नाव धरी एकांत ॥ ७ ॥
॥ ढाल चालीशमी॥ .. ॥ मेरे जीउमें लागी धाराकी ॥ ए देशी ॥ सुप्रतिष्टपुरमा दुवो, नृप अनंतवीर्य वसवान रे॥ रूपवती राणी मनमोहन, कमनीय कंत सुजाण रे ॥ १॥ नवि जीवमें व्रत गुण धारियें ॥ जेम सफल फले सवि आश रे ॥ एकमनां ए व्रत पालतां, होय धानंद लील विलास रे॥ नम् ॥ ५ ॥ श्रावक जिनचंड नामथी, तिहां निवसे निश्चलधर्म रे ॥ सुंदर आरुति सुंदरी नामें, करे गेहिनी गुन कर्म रे ॥ ज० ॥३॥ जिनमत शु- जाणे जलो, जीवाऽजीवादिक तत्त्व रे ॥ समकित मूल श्रावक व्रत पाले, टाले मिथ्यामति तंत रे ॥न ॥४॥ एक दिन पाप . ले। वेठो, पौपधशालामकार रे ॥ सावद्ययोग पञ्चरकाण करीने, एकमने निरतिचार रे ॥ न० ॥५॥ण अवसर पहेले सुरलोकें, हरि निरखे जिन चंड रे ॥ यहो थहो धन धन एह महामति, एम प्रशंसे इंद रे ॥ ना ॥ ६ ॥ पूरे तब सुर सेवक स्वामी,श्यो गुण दीठो तास रे ॥ इंश कहे पोसह व्रत एहनो, अविचल लीलविलास रे ॥ न ॥७॥ एक सुर मिथ्यावचन : मिध्यावी, करंचा थाव्यो ताम रे ॥ श्रावक जिनचंपासें श्रावी, बहेन . थइ कहे थाम रे ॥ ज० ॥ ॥ सूरज उदय धकालें कीधो, सुण बांधव