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५० जैनकथा रत्नकोप नाग आठमो. जो ॥ ६ ॥रे की, तें निर्लज अकाज ॥ परनारी लेइ थाव्यो थाज ॥ जो ॥ ७ ॥ परशय्या परदार परान्न, परमंदिर परवसन निदान ॥ जो ॥ ७ ॥ मूरख हृदय विमासी जोय, ए पांचे आपणां नवि होय ॥ जो ॥ ए॥ पररमणी नवि निरखे कंच ॥ तो तेहनें मुख शोजे मूड. ॥जो॥१॥ तुज सरिखा जे जगमां नुत, ते तिर्यंच विण शिंग ने पुत्र ॥ जो ॥ ११ ॥ परनारी लावंतां तूऊ, मति सघली तारी गई मूंग ॥ जो ॥ १२ ॥ पण तारो ईहां नहिं वंक, मल्यो नथी कोई सवल त्रिवंक ॥जो ॥ १३ ॥ पण जाणुं दुं सुण नूपाल ॥ श्राव्यो ने तुज फीटण काल ॥ जो ॥१४॥ पण मुज स्वामी ने वडनाग्य ॥ आप सुतारा पाये लाग्य ॥ जो ॥ १५ ॥ अशनिघोप कोप्यो अति जोर ॥ दूत प्रत्ये कहे व यण कठोर ।। जो० ॥ १६ ॥ लाव्यो सुतारा नुज वलयोग, रयण नहिं ए रंकनें नोग्य ॥ जो ॥ १७ ॥ शय्या वसन अने तांबूल, नारी शस्त्र र या वहुमूल ॥ जो० ॥ १७ ॥नोगवे जगमा वीर जे होय ॥ मूरख हृदय विमासी जोय ॥ जो ॥ १५ ॥ मुक पासेंथी नारी पाश ।। करतो ले दशे अंतें विनाश ॥ जो ॥ २० ॥ रहे वेगे मन राखी नाम, कहेजे दूत न घाले हाम ॥ जो ॥ २१ ॥ तुमने गुं माझं कंगाल, जेम आव्यो तेम वहेलो चाल ॥ जो ॥ २२ ॥ वल्यो दूत थइ नैरव रूप, पति धागे कहे वात स्वरूप ॥ जो ॥ २३ ॥ वीजे खंमें नवमी ढाल ॥ पूर्व वैर तणो जु ढाल ॥जो ॥॥ श्री सुमति सुगुरुनो कहे कवि राम, जगमां वैर न कीजें थाम ॥जो॥२५॥ सर्व गाथा ॥२६॥ श्लोक तथागथा ॥१३॥
॥दोहा॥ ॥ वचन सुणी वेरी तणां, सवल सजाई कीध ॥ विकट कटक नट ! मेलिया, तोर नगारे दीध ॥ १ ॥ वदु राजेश्वर संचस्या, धर थरके दल । नार ॥ कंत सुतारानो दु, तरत तिहां अस्वार ॥ २॥ तुरत जा पहोंचो तुमें, चमरचंदा ल्यो घेरि॥ सवल विद्याधर सैन्यगुं, करो अरिने फेर ॥३॥ ज्येष्ठ पुत्रगुं साधवा, जामु हिमगिरि आज ॥पर विद्या नदिनी,माहाज्वाला माहाराज ॥ ४॥ शीघ्र थावि मलगुं अमो,अने सवल सुत साथ ॥ नावु कनें कहे नावथी, सिझ करो नूनाथ ॥५॥ पिता पुत्र हिमगिरि जी, साधे विद्या सार ॥ हवे श्री विजयनरेजी, चढिया बदु परिवार ॥ ६ ॥