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शहरिया ॥ १४ ॥
फल जार्ण अपक्क ते
गयो वल दो जूप १६ ॥ चर ते
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जैनकथा रत्नको प्रजाव ए जाणवो, जे अंकुशे हरिघात गलें, नृपें टाल्यो उत्पात रे ॥१७॥ वादेखीने ऐ, नहिं त्रीजो हां कोय रे ॥वा॥ चप ॥ र न होय रे ॥१पावा॥ यतः॥ षट्कर्णोनियो एम विकर्णस्य च मंत्रस्य, ब्रह्माप्यंत न गवति ॥छूटयं कहे जो मंत्र ए, जेदाशे जनमाय रे ॥ वासा स्तरशे इण वाय रे ॥२०॥वा०॥वा०॥ कवि सोप्युं गुफ रे ॥ वा० ॥ वाहिर नेद लहे नहि,प्राएं ॥ वा० ॥ वा ॥ वात सुणी राय हर्षीयो, ग्रही वा ॥ सैन्य समीपें धावियो, वरत्यो जय जयका ढाल नगी अग्यारमी, चोथे खमें उदार रे ॥ वाण नहिं, धन्य तेहनो अवतार रे ॥३॥वाणासर्वगार
॥दोहा॥ कहे गुनंकर सुनटने, प्रचनो प्रबल प्रताप ॥ परग सवल संताप ॥ १ ॥ वात सुणी चित्त चमकिया, हो धहो जुजवल स्वामी, सहू वखाणे संत ॥ दिर नएी, वाजंते वाजिन ॥ पुरमांहे यश विस्तर ॥३॥ नगरमांहे उत्सव दु, चोके चोक ए नरपति हण्यो, रहेको जग यख्यात ॥ ४ ॥
॥ ढाल बारमी ॥ ॥ देशी आने लालनी ॥सना विसर्जी हो राय, था लाल ॥ पटराणी पायें पडे जी ॥ १ ॥थ साहिब नर शिरदार ॥ था ॥ वात कहो हेजें ह उत्सव माहाराज, नगरमांहे बहु आज ॥ प्यारे । जो घणो जी॥३॥ कहे वासम सुण नार, सार साल ॥ याज में हरि दणियो सही जी ॥४॥ करे सस्नेह ॥ नीके लाल ॥ को न करे ते में कयूं वो वसवंत. कोइ नहिं दृढचित्त ॥ प्यारे लाल ।। 4
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