________________
श्री शांतिनाथनो रास खंम चोथो. १७५ राजन सर्पना खेम ने दोय, जो नवि मानो तो नजरेंजी जोय ॥ दो० ॥४॥ यापी देखाच्या रे यहि दोय जाग, रायना मनमां रे कपन्यो राग ॥ दो० ॥ राजन विपसंक्रम जय जाणी, तन फरस्युं रे मुफ मात ए राए। हो ॥ ५॥ टलीया यंतर द्रमतमजाला, विकस्यां रे हृदय कमल ततकाला ॥ हो० ॥ तूगे राय विचारे मनगुं, एह उत्तम नर रार यतनद्यं ॥ हो० ॥ ६ ॥ अहो नपकारी उपर थयो रोपी, मुज जे वो जग कोइ न दोपी ॥ हो ॥ अहो एहना वांधव गुणवंता, कहेवा कहा मुऊन दृष्टांता ॥ हो ॥ ७॥ एह न मारयो ते ययुं घj सारु, राज दे व्रत से सधारूं ॥ हो० ॥ कहे परिवारने चार ए बंधु, गुणमणि रयण अगाध ए सिंधु ॥ हो० ॥ ॥ कुलदेवीयें एह धंगज दीधा, मुफ श्रपुत्रियानां वांवित सीधां ॥ हो ॥ राज्य स्थापी रे देवराज कुमार, सुथो ढुंलेश संयमनार ॥ हो । ए॥ कहे परिवार पडखो 4 च रात, चारित्र दोहिलं वय कोमल जात ॥ हो० ॥ कहे राजा मुज पूर्वज पहेला, पलित यया विण निसख्या बहेला ॥ हो ॥ १ ॥ पाम्या हो शिवपद हुँ मंदत्नागी, कटुकविषय ऊपर रह्यो रागी ॥ हो० ॥ हवे निों मुझ संयम लेवो, राज्य कुंवर देवराजने देवो ॥ हो ॥११॥ तद नंतर गुन दिन निरधारी, राज्य उत्र्यां देवराज विचारी ॥ हो ॥ पद युव राज वत्सराजने दीई, पुण्यं वांछित कारज सीधुं ॥ दो० ॥ १२ ॥ एहवे अवसर नंदन वनमां, श्रीदन सूरि धाव्या वाहाला रे मनमां ॥ हो । बनपालक जय राय वधाव्यो, मन मानी ते वधामणी पायो होगा। लेई परिवारने बंदण चाव्यो, मुनि नमवानी वेला मनमांहे माल्यो हो॥ धन्य दिवस मुजधाजनी वेला, प्रनु तुम दर्शनयी लहि लीला ॥ दी० ॥ १४ ॥ गुरु वंदी वेतो मन खां, मुनिदेसण नितुणे रे एकांत ॥ हो । चोये हो वा दाल चोदनी सारी, रामविजय कहे सुणो नर नारी 11 ॥दो० ॥ १५॥ सर्व गाथा ॥ ४२०॥ लोक तथा गाथा ॥२०॥
॥दोहा॥ __॥ योग्य जाणीने पर्वदा, दीये गुरुजी उपदेश ॥ नविक जीव दग्ने हिये, नांजे सकल कजे ॥ १ ॥