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॥.९ कोटी जोस जपे एक तिहांत नारी
श्री शांतिनाथनो रास खंम पदेलो. १३ . स० ॥ १२ ॥ गजवरखंधे वेसारी जी ॥ कुछ ॥ असवाव संघातें नारी
जी ॥ स ॥ पुरमा आवे असवारी जी ॥ कु० ॥ तिहां खलक मल्यां नर नारी जी ॥ स ॥ १३ ॥ सङ जंपे ए चिरंजीवो जी॥ कु० ॥ कुंवर ए कुलनो दीवो जी ॥ स ॥ सघलो ए मंत्री वंक जी॥ कु० ॥ दी कूडं कोढी कलंक जी ॥ स ॥ १४ ॥ नव इजात एवं हारी जी
॥ कु० ॥ बोले पुरजन व्यवहारी जी ॥स ॥ मंदिर आव्यो कुलना जी . कु०॥ तव वाग्यां ढोल निशाण जी ।। स० ॥ १५॥ नृप सचिवनें कीधो कागे जी ॥ कु० ॥ कयो दुकम तलारने मागे जी ॥ स० ॥ कुण चोर तणो रखवाल जी ॥ कुछ ॥ बोले एम बाल गोपाल जी ॥ स ॥१६॥ फल पाम्यो प्रत्यद एह जी ॥ कु०॥ दी, आल सतीने जेह जी ॥स॥ महोकम माखो तव मूठे जी॥कुण॥ गडदा पाटू पड्या पूजें जीस॥१७॥ तिहां मंगलकलश विचारे जी ॥॥ सदु निजकतने अनुसारें जी ॥सण॥ निजातम दोष विनावे जी ॥ कु० ॥ इहां पर ते निमित्त कहावे जी ।। स॥१७॥ यमुक्तं ॥ रे जीव सुहहेसु० ॥१॥ अप्पा चेव दमेधचो, अप्पा दु खलु मुद्दमो॥अप्पा दंतो सुही होइ, अस्सि लोए परचय ॥॥पूर्वढाला। मुफ वे जो ए हणाय जी ॥ कुण् । अनुकंपावत कुःखाय जी॥ स०॥ . सदु जीवने जीवित प्यारं जी।कुण॥ कही नृपने एने नगारु जी॥स॥१॥ यमुक्तं ॥ अमेध्यमध्ये कीटस्य, सुरेंइस्य सुरालये ॥ समा च जीविताकां क्षा, समं मृत्युजयं योः ॥ ३ ॥ अन्यदर्शनेपि ॥ योदद्यान्मेरुवत्स्वर्ण, क स्नां चैव वसुंधराम् ॥ एकस्य जीवितं दद्या, न च तुल्यं युधिष्ठिर ॥ ४ ॥ पूर्व ढाल ॥ कहे नृपने प्रच अवधारो जी ॥ कु० ॥ सचिव उपरें कोप निवारो जी॥ स ॥ मुफ नपरें महेर करीजें जी ॥ कु० ॥ मंत्रीने जीवित दीजें जी स॥२०॥ धन्य उपगारी तेह जी ॥ कु० ॥ अवगुणी उपरें धरे नेह जी॥ स ॥ कही वारमी ढाल विचारी जी ॥ कु० ॥ गुणवंतनी जाउं व लिहारी जी ॥ स ॥ २१ ॥ सर्वगाथा॥ ३१ ॥ गाथा तथा श्लोक ३२
॥दोहा॥ ... ॥ नृपलामाता यायहें, तेड्यो मंत्री तेह ॥ जा मुक्यो तुम जीवतो, पण ण पुर नरदेह ॥१॥ निजनगरीयी नीलस्यो, सचिव तेह मतिहीन ।। जग सबलु ए जाएजो, उदयतणे याधीन ॥ २ ॥ उदये थावे कर्मनें,
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