________________
शुश जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो. सा सुंदरी,सांजलीप्रीतम बोल॥रोम रोम तन नन्नस्यु,आजअधिक रंगरोल ६
॥ढाल वारमी ॥ ॥ मुखने मरकलडे ॥ ए देशी ॥ कृत्रिमकोप करीने जी ॥ कुमरी एम नांखे ॥ ग्रहो ए मिथ्यानापीने जी ॥ सदुकोनी साखें । एह जूतुं केम वोले जी ॥ कु० ॥ नहिं ए कोई नरनें तोले जी ॥ स० ॥ १ ॥ तेने ग्रह वा सेवक धाया जी ॥ कुछ ॥ तव वालक सवि उजाया जी॥ स ॥ ते ग्रही गृहमांहे आएयो जी ॥ कुछ ॥ ते समज्यो मनमांहि जी ॥ स० ॥ ॥ उत्तम आसन वेसारी जी ॥ कु० ॥ कर जोडी रही सा नारी जी ॥ स ॥ कहे सिंहने ए मुफ कंत जी ॥ कुं॥ ए यावी मिल्यो एकांत ॥ स ॥३॥ आज मनोवांनित सवे फलियां जी ॥ कु० ॥ प्राणजीवन मुफने मलिया जी ॥ स ॥ आज जीवित जन्म प्रमाण जी ॥ कु० ॥ मुफ त्रूच्या श्री जिननाण जी ॥ स॥ ४ ॥ मन संशय सिंहज जाणी जी॥ कु० ॥ ज जुवे अवर सहिनाणी जी ॥ स ॥ जाजन मुकतां ते दीधां जी ॥ कु० ॥ नामांकित असली सीधा जी ।। स० ॥५॥ जय जोयो ते सवि दीगो जी ॥ कुछ ॥ मन संशय सघलो नागे जी ॥ स०॥ धनदत्त शेठने कहे जाणीजी। कु०॥ए तुम सुतनीधणीयाणी जी ॥ स० ॥ ६॥सुपी वातने शेठ उजाणो जी ॥कुणावे तिहां श्वास नराणो जी॥ स० ॥ धरि रूप रमणीनुं धागें जी ॥ कुछ ॥ यावी श्वसुरने पाये लागे जी॥ स॥७॥ आवे नयर नरेश्वर रंगें नी॥ ॥जोवा मलियां वह उन रंगें जी ॥ स ॥ पंचसाखें राजकुमारी जी ॥ कुण् ॥ थइ रही मंगल घरनारी जी ॥ स ॥ ॥ पसरी बहु नयरें वात जी॥ कु० ॥ धन्य कुमरी एद सुजात जी ॥ स० ॥ नरवेप देइने चाल्यो जी ॥ कु० ॥ सिंह निन न यरी जणी याव्यो जी ॥ स ॥ए ॥ निजनृपति बागल.ावी जी ॥ कु० ॥ सवि बात कही समजावी ॥ स ॥ धन्य मुफ तनया चतुराइ जी ॥ कु० ॥ अहो जुन सचिव धीजी ॥ स० ॥ १० ॥ प्रीतियें न रहे गर्नु पाप जी ॥ कु० ॥ नवि दीजं पर उपताप जी ॥ स ॥ पठी करा एहने मावो जी ॥ कु० ॥ एक वार जमाने तेडावो जी ॥ स ॥११॥ सिंह मूकीने तेडावे जी ॥ कु० ॥ दंपती दोय चंपा यावे जी ॥ स ॥ नृप सामो अाव्यो या जी ॥ कुछ ॥ वदु मान जमाश्ने थापे जी ॥