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जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो.
चीजे खमें रामविजय कहे, सुणो एकत्रीशमी ढालें रे || धन्य प्राणी एस शोक तजीनें, धर्मै मनडुं वाले ॥०॥१४॥ सर्वगाथा || ८०४ ॥ श्लोक ॥ १५ ॥ दोहा ॥
॥ सुणो वेहू बंधव तो, कहुं संयोग संबंध ॥ बीजे नवें जेला थया, सुणो तेह प्रबंध ॥ १ ॥ जंबूदीपें जरतमां, नगर वैताढ्य उदार ॥ दक्षिण श्रेणें दीपतुं, गगनवलन पुर सार ॥ २ ॥ मेघवाहन विद्याधरो, मेघमालिनी नारि ॥ दंपती दोय सुख जोगवे, दोगुंदक अवतार ॥ ३ ॥
॥ ढाल बत्रीशमी ॥
॥ वे वे मुनिवर विहरण पांगुखा जी ॥ ए देशी ॥ अनंतवीर्यनो जीव हवे चवी जी, पहेली नरकहूंती ते ताम रे ॥ याव्यो मेघवाहन मेघमालि ने जी, वंशें उपन्यो मेघनाद नाम रे ॥१॥ अनंतवीर्यनो जीव हवे चवी जी ॥ ए यांकणी ॥ पाम्यो यौवन वय रलीयामणुं जी, जेहवो रति रमणी नो कंत रे ॥ परणाव्यो कुमरी खेचर तणी जी, पाट पितायें थाप्यो संत रे ॥ ० ॥ २ ॥ संयम लीधो मेघवाहन नृपें जी, पाले मुनिवर पंचा चार रे || करे रे क्रिया ते सुधि साधुनी जी, नित्य नित्य जश्यें तस वलि हार रे ॥ ० ॥ ३ ॥ श्रेणी वेदुनो स्वामी ते दुई जी, महोटो खेचर ते नृप मेघनाद रे || देश देशांतर सत्य ने दया जी, मनमांहे धरीने याह्लाद रे ॥ ० ॥ ४ ॥ एक दिन मेरुवनें यात्रा गयो जी, पूजे जिनपडिमा गु जनावरे ॥ तेम वली विद्या प्रज्ञप्ति नणी जी, महोटो जेहनो जग प्रना वरे ॥ ० ॥ ५ ॥ एहवे यांव्या सुर सर्वे कल्पना जी, जिनयात्रा नंद न वनमांहे रे ॥ दीठो अच्युत हें जिन पूजतो जी, बोलाव्यो धरि मन त्सादें रे ॥ ० ॥ ६ ॥ मनमां विस्मय तेहनें ऊपन्यो जी, केम बोलावे मुने एह रे ॥ कां मेघनाद तुं मुऊनें न उलखे जी, तुऊ मुऊ पूर्व जवनो नेह रे ॥ ० ॥ ७ ॥ नांखी पूर्व जवनी वारता जी, निसुणी पाम्यो मन बैरा ग्य रे || इंड् गया जिन पूजी स्थानकें जी, वेडु मनमां वस्यो त्र्यनुराग रे ॥ ० ॥ ८ ॥ याव्यो अपर वली निजमंदिरें जी, मन संचारे बंधव वात रे ॥ मुनि थया जश्ने व्यमर मुनि कने जी; उत्तम तेहनां कुल जात रे ॥ ० ॥ ए ॥ नंदनवनमां तप तपे चाकरुं जी, रह्या एक रयणी पडिमा तेह रे ॥ मेरुशिखर परें न चले चालव्यो जी, नहिं निजदेह ऊप