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श्री शांतिनाथनो रास खंम बीजो... ३ए
॥ ढाल चोथी । ॥ देशी कडखानी ॥ कोप चढे क्रूरलोचन कहे शूरमां, सचिव धस्सि , 'उहां जा पहेला ॥ दोय ते उष्टनें ज्वलन त्रीजा जणी, वांधी मुसके
इहां ला वहेला ॥ १ ॥ जोयजो विपयथी विपम गति नीपजे, विपय नडिया बढे एम घेटा ॥ विपयथी सुरवरा नरवरा खेचरा, नारि यागें रह्या - जेम चेटा ॥ जो० ॥ २ ॥ दूत थाव्यो वही पोतनपुर सही, मद चढयो बोल बोले अटारो। मुख वन घालतो शत्रु दल पाडतो, वांकडो वांधि के. कटारो ॥ जो० ॥ ३ ॥ रे सुतारत्न मूकी निजस्वामीने, ज्वलन किम रंकने हाये दीg ॥ रत्ननुं गण प्रचुरेव पुहवीतलें, नीचर्नु वाक्य निसुण्यं न सीधू ॥जो ॥ ४॥यतः॥मणिर्मेदिनी चंदनं दिव्यति, वरं वामनेत्रांगजो
बाजिराजः ॥ विना नूनुजं कोहि नोक्तुं समर्थो, गृहे युज्यते नैव चान्य ' स्य पुंसः॥४॥ ज्वलन कहे दूत सुण एह साधु कहुँ, स्वामी जागी सुता .. एह दत्ता ॥ बोल तुं पाधरे निजधरा ए नहिं, कां सहे अन्यथा चरणसत्ता .. जो ॥ ५॥ कुमर कहे दूत वाचाल दीसे नलो, जा कहूँ जीवतो जीव लेई॥ .. पारकी नारी भाशा करे ताहरो, स्वामि मरशे अखूटेज एही ॥ जो॥६॥
जाणुं मरवा तपी होंश दीसे घणी, जे अकाजें न लाजे न चूके ॥ धावियो फोटणकाल तुम स्वामीनो, तो सही एहवी बुद्धि सूफे ॥ जो० ॥ ७॥ दूत • घाटो थयो तुरत पाठो गयो, स्वामी धागें सहू वात गाई । वात मुखि ऊतीयो सवल शिर चाटको, तुरत गेडी निशाणे दिवाई ॥जो० ॥ ७ ॥ हल हल था हथियार यहि सावदा, सबल विद्याधरो करो सजाई॥ तुरत पहोंच्यो जश्तेह पोतनपुरें, देखतां खेद नारख्यो उमा। जो॥ ए॥श्रावीचा तरवरा सेन्या परिवरया, नयर पोतनपुरे तेह वेला ॥ सिंहाजित सामुही थाची अडियो हती, दोट दीधी करया नेल नेला ॥ जो० ॥ १० ॥ देवी जावाय नाठा सद्ध बापडा, ऊडि श्राकाश पाता सिधाव्या ॥ कुमर याव्या नगरजीत फने करी, सधव मार्तगमोती वधाव्या ॥ जो० ॥ ११॥ त्रिप्टष्ट र प्रचल बेदु खेचरें परवन्या, प्राविया वतुरगेहें जमाई । कंत मयंप्रना कुमरीनो श्राविची, घर घरे बांटे सदुए बधाई ॥ जो० ॥ १२ ॥ सामुदो यावियो शत्रु निसुणी तदा, श्राप हयग्रीव कीधी चढ़ाई लाख बहनाली गज ड्यबरा हिंसत्ता, कोहि नव अश्वगं यायो धाई । जो०