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श्री शातिनाथनो रास खंत्रीजो. १३ए ॥३॥ तप करी काया शोषवी, हालतां हे वाजे वलि हाड के ॥ सहे परीसह याकरा, तूरव तृपा है वली ताप ने टाढ के ॥ न० ॥ ४ ॥ घाती कर्मव्ययी लह्या, नाए पचम हे पंचमगति वास के ॥ करुं कर जोडी बंदणा, सिरुपी हे या लीलविलास के ॥ २० ॥ ५ ॥ कहे सुव्रत जेम योगीने, चूरणे करी हे वासी तस मीज के ॥ तेम धर्म ए धातमा, या सीजे हे पाणी गुदरीज के ॥ न० ॥ ६ ॥ एम उपदेश सुणी जलो, श्रीदत्ता है यहे आवकधर्म के ॥ मुनि बंदी मंदिर वली, मनमांहे हे जाण्या व्रतमर्म के ॥ न० ॥ ७ ॥ सामायिक पोसह करे, उछ अहम हे. यांबिल उपवास के ॥ नित्ये विगय न वावरे, गुन नावना हे नावे उल्ला स के ॥ न ॥ ॥ एक दिन कर्म तणे वशे, मनमांहे हे श्राव्युं तस एम के || गु फल होशे के नहिं, पालुं हुं हो सुधो धरी प्रेम के ॥ नए ॥ ॥ विचिकित्सा एहवी करी, चवि तिहांथी है जिहां उतपन्न के ॥ कहे कीनियर केवली, ते दार हे मुणो राजन के । न० ॥ १७ ॥ण विजय वैतादयमां, सुरमंदिरे हे नगरें गुणवंत के ॥ कनकपूज्य राजा नतो, वायुवेगा हे राणीनो कंत के ॥ न० ॥ ११ ॥ कीर्निधर सुत जेहनो, नरयोवन हे श्राव्यो नृपाल के । अनिलवेगा मुज कामिनी. गुप वंती दे रुप रतियाल के ॥ न० ॥ १५ ॥ कुंन तपन गजराजने, स्वप्न
ये हो सूचित्त सुत सार के । प्रसव्यो वागल ने थयो, जोरावर दे प्रतिदरि दमितारि के ॥ न० ॥ १३ ॥ बदुकन्या परणावियो, में सोप्यु हो तेदने निजराज्य के ।। गुरुपाने नागारता, में सीधी हो वा शिवराज के ॥ न ॥ १४ ॥ ते दमितारिनी बनना, मर्दै राती दो करखें सजात के ।। कनकालिरी पुत्री नानी, तुं हुई हे इहां गुण विख्यात के ॥ न० ॥ १५॥ करी विचिकिया पूर्वे, तेमाटें हे थयो बंचुबियोग के ॥ सकस कमाइ यापणी, जग मदोटो हेप कर्मनो रोग के ॥ न० ॥ १८॥ निज पुरच जर सांनी, मुनि मुम्बधी दो पामी चराग्य के ॥ धिन धिक विषयों जीवने, विग्यायो नाचे नवताग के.॥ न ॥ ७ ॥ वेद बंधवने दिन थे, जो अनुमति दे यापी मुक श्राज के। तो दीवा जिनराजनी, घड़ी रार हे भानमनां काज के न ॥ १॥ अनंनवीर्य अपरा जिता, कदे सुना हे सनमा पुरी जाय के ॥ सपंधन जिनपासें तुमें,