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श्री शांतिनायनो रास खंग बहो.
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ए जोग हो ॥ ज० ॥ बेगं तुक केम उपन्यो रे ॥ म० ॥ परदेशें ज वानो रोग हो ॥ ज० ॥ १३ ॥ विषमपंथ परदेशनो रे ॥ म० ॥ इंडिय
वश होय जास हो ॥ ज०॥ नारी लालचें नवि पडे रे || || बोले वचन विमास हो ॥ ज० ॥ १४ ॥ ते परदेशें संचरे रे ॥ म० ॥ वत्स ए 5 ष्कर वात हो ॥ ज० ॥ रत्नचूड कहे माहरो रे ॥ म० ॥ न चले नि श्चय तात हो ॥ ज० ॥ १५ ॥ इव्य लक जेइ तातनुं रे ॥ म० ॥ उधारे परदेश हो ॥ ज० ॥ चाले करियाएं ग्रही रे ॥ म० ॥ कोइक वाहण बेसि हो ॥ ज० ॥ १६ ॥ शेठ शीखामण दे घणी रे ॥ म० ॥ वत्स रहेजो दुशियार हो ॥ ज० ॥ पुर अनीति मत जायजो रे ॥ म ॥ ज्यां नहिं न्याय विचार हो ॥ ज० ॥ १७ ॥ तिहां नृपति अन्याय बे रे ॥ म० ॥ अवि चारित प्रधान हो ॥ ज० ॥ सर्वग्राह्य यारको रे ॥ म० ॥ लहे नृ पनुं बहुमान हो ॥ ज० ॥ १८ ॥ नाम शांति पुरोहितो रे ॥ म० ॥ गृहितक शेठ हो ॥ ज० ॥ मूल नाश सुत तेनो रे ॥ म० ॥ नय रमांहे बहु वेंट हो ॥ ज० ॥ १९ ॥ रघंटा गणिका तिहां रे ॥ म० ॥ यमघंटा तस माय हो ॥ ज० ॥ द्यूतकार चोरादिका रे ॥ म० ॥ बहु निवसे दुःखदाय हो ॥ ज० ॥ २० ॥ लोक वसे तिहां प्रति घणां रे ॥ म० ॥ उंचा जस प्रावास हो ॥ ज० ॥ जे अजाण जाये तिहां रे ॥ म० ॥ पाडे तेहने पास हो ॥ ज० ॥ २१ ॥ एवं अनीतिपुर मुकीने रे ॥ म० ॥ करजो सुखें व्यवसाय हो ॥ ज० ॥ जनक शीखामण चित्त धरी रे ॥०॥ चाल्यो ते सुसहाय हो ॥ ज० ॥ १२ ॥ शकुन जलां ययां तेहने रे ॥ म० ॥ वेगं प्रवहण तेह हो ॥ ज० ॥ सुखें रे ॥ म० ॥ धरता हर्ष अबेह हो ॥ ज० ॥ छीपने रे ॥ म० ॥ व्यता रे ॥ म० ॥ याव्या अनीतिपुर वाय हो ॥ ज० ॥ २४ ॥ पोत देखी ते प्रातुं रे ॥ म० ॥ हरख्यां सघलां लोक हो ॥ ज० ॥ हेरि कोटऊंची करी रे ॥ म० ॥ रविदरिसा जेम कोक हो ॥ ज० ॥२५॥ विय तुम्हें सांजलो रे ॥ म० ॥ ए संबंध रसाल हो ॥ ज० ॥ पचास रे || || राम कहे उजमाल हो ॥ ज० ॥ ३६ ॥ ११० ॥
चाव्या जलनिधिमां २३ ॥ धीवर इवित
चलव्यां पण ते वाय हो ॥ ज० ॥ जोरावर नवित
हवे न
बहे जंग
८७ ॥