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जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो.
रे ॥ मु० ॥ ६ ॥ निथ पधास्था वनमां, दरखी सुमति कनी मनमां, उलट नवि माये तनमां रे ॥ मु० ॥ ७ ॥ वल केशव निसुणी वात, चिंते धन्य कुमरी जात, जरयौवन यावी जात रे ॥ मु० ॥ ८ ॥ माहानंद मंत्री सुविचारी, मांमयो स्वयंवर गुण धारी, थाव्या भूमिपति जारी रे ॥ मु० ॥ ए ॥ नामांकित व्यासन उली, वेसे नरवरनी टोली, वाघा कस्या केशर घोली रे ॥ मु० ॥ १० ॥ कन्या लेइ वरमाला, सखीसायें बाइ सुकुमारा, घनमां मनुं ए जलवाला रे ॥ मु० ॥ ११ ॥ पूरव जव साख जीव, एहवे द्यावे तिहां देव, पहेलां संचित देव रे ॥ मु० ॥ १२ ॥ सदु सांजलतां ते यावी, कहे कुमरीने समजावी, जीव ए विषयानो जावी रे ॥ मु० ॥ १३ ॥ जोगवीया वार अनंत, तृप्तो न थयो ए जंत, विषयामिप जोग डरंत रे ॥ मु० ॥ १४ ॥ हुं पहेला नवनी सासू, याराध्युं संयम पासु, पद पायुं वैमानिक खासुं रे ॥ मु० ॥ १५ ॥ कुमरी निसुली कहे साचं, ए सुख सांसारिक काचुं, हवे हुं एहथी नवि राचुं रे ॥ मु० ॥ १६ ॥ कहे नूपने आणा आलो, संयम लेतां मत वालो, हवे मूकीश कमालो रे ॥ मु० ॥ १७ ॥ बलन मुरारि विचारी, कहे तनया तुक मति सारी, धन धन तुं बालकुमारी रे ॥ मु० ॥ १८ ॥ अनुमति प्रापी निज तातें, पंचशत कुमरी संघातें, ग्रयुं संयम सुव्रता हाये रे ॥ मु० ॥ १९ ॥ तप तपती ते प्रति सारां, वाधी निर्मल ध्याननी धारा, कीथा तेणें कय विहारा रे ॥ मु० ॥ २० ॥ करी घाती कर्म क्ष्य पामी, केवललीला सुख कामी, अनुक्रमें दुइ शिवगतिगामी रे ॥ मु०॥२१॥ खंम त्रीजे त्रीशमी ढाल, गुण गाया सतीना रसाल, रामविजय कही उजमान रे ॥ मु०॥२२॥८८३ ॥ ॥ दोहा ॥
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॥ हवे मुरारि ऋद्धि जोगवे, खंम त्रिहूंनी सार ॥ रणरसमां बांधी ari faar कर्म अपार ॥ १ ॥ यटुक्तमागमे ॥ चत्तारि सूरा पन्नत्ता तं जहा, खंतिसूरा तवसुरा जुवखरा दाणखरा खंतिसूरा अरिहंता जगवंता तवसुरा धागारा जुधसुरा वासुदेवा दाणखरा वेसमणा ॥ इति पूर्व दोहा ॥ प्रीति घणी वेदु बंधुने, रमतां रंगें काल ॥ घणो गयो जाएयो नहिं, मोह वडो जंजाल ॥ १ ॥ चोराज्ञी लक्ष पूर्वनुं, पाली पूरण प्राय ॥ ते हरि चवियो व्यवतस्यो, पहेली नरके जाय ॥ ३ ॥ सहस बर्हेतालीश वर्षेनुं, मध्यम त्र्यायु उप्पन्न ॥
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