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श्री शांतिनाथनो रास खंमत्रीजो. १२७ मोकली,कां मरवानी हूंश ॥ रूग्यो स्वामी न मूकशे, जूत कहूँ तो सूंस ॥
॥ ढाल बावीशमी ॥ करेलडां घड दे रे ॥ए देशी ॥ कहे वंधव दोय ले चलो, दासीरूप निधा न॥ एहनी स्वामी ऊपरें, प्राण करे कुरबान ॥१॥ वचन अम सुण ले रे ॥ ए थांकणी ॥ रूप करी दासी तणु, विद्यावल वलवान ॥ तुरत जई पहोता तिहां, जिहां प्रतिहार राजान ॥ व ॥ २ ॥ कर जोडी ऊनी रही, मृग नयणी मनोहार ॥ दमितारि देखी कहे, अहो अहो अभुत नारी ॥ व ॥ ३ ॥ नाटक मांमयु मानिनी, मोह्यो नरशिरदार ॥ हाव नाव दाखे जला, लटपटाइ लीयो नारि ॥ 4 ॥ ४ ॥ देखी कलाकुशलीपगुं, बोल्यो एहवा बोल ॥ रूप सुगुण नारी इसी, नहिं कोई जगमां अमोल ॥ २० ॥ ५॥ कनक सरीखे मंदिरें, जाइ रहो मनमोद ॥ राग कला सवि शीखवो, नव नव नांति विनोद ॥ व ॥ ६ ॥ ज्युं पयनाजन नालवे, हर्पित होय विमाल ॥ तेम नृपनी लही आगना, थया मनमांहे खुशाल ॥ व ॥७॥ देखी ते रंजा जिसी, रूपवंत अनिराम ।। कुमरी गुगनी उरडी, मोही रह्या गुणधाम ॥ व ॥ ॥ गीतकला गुण केलवे, नाटक नव नव नांति ॥ प्रीति बनी पासे रहे, ते दासी दिन रात ॥ ३० ॥ ए ॥ ले वीणा निज हाथमां, तंती चढाची धून ॥ विच विच गाये तानमें, अनंतवीर्यके गुन ।। 40 ॥ १० ॥ मुख पूनम मानु शशी, अर्धचंद सम लाल ॥ लोचन पंकज पांखमी, थधर ते लाल गुलाल ॥ व ॥ ११ ॥ अहो विधिना ए नर घट्यो, दी नांजे रे नूख ॥ मानु महियल ए फल्यो, कल्पतरुको संख ॥ ५० ॥ १२ ॥ कहे दासी प्यासी नई, देवन उन दीदार ॥थनंतवीर्यके कपर, तन मन धन ए वार ॥ व ॥ १३ ॥ जिणे उनको देख्यो नहिं. मुखपंकजको कृत ।। लो नारी लेखे नहिं, जीवित तिन• कबूल ॥ व 1 १HI| अपराजित रूपें रही. कहे दासी गुण एम ॥ सुणत नइ ते रागि रणी, वाध्यो विषयना प्रेम ॥ ॥ १५ ॥ त्रीजे खमें वावीशमी, ढाल नली सुरसाल ॥ गम कहे जग को नहिं. प्रेम समो कोऽ साल ॥ ब० ॥ ॥ १६ ॥ गग नेग्य | मने का नगमे ।। ए देगी। मुजकुं याण मिला
गो. मनमोहनने गजन ।। मुफ ॥ए यांकणी ॥ कनफलिरी कदे सहि — यर मारी, मोदी रायु मार्न मन ।। मु० ॥ १ ॥ अनंती रजपून रंगी