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२६ जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो. तखो, वारू वयण समाज ॥ १ ॥ स्वामी पधारो आंगणे, करो पावन मुक गेह ॥ अरज अमारी चित्त धरो, जो मुफ ऊपर नेह ॥ २ ॥ कहे राजन तुमगुं सदा, नहिं अंतर वत्सराज ॥ माटें नोजननो किस्यो, अब सर ने घर आज ॥३॥ वत्सराज कहे साहिवा, ते शुभ अवसर जाणि ॥ जिए दिन राज पधारशो, मुफ बांगणे गुणखाणि ॥ ४ ॥ कृपा करीने हा नणो, मुझ मन हर्षित होय ॥ हतहूंती नृप मानीयुं, निसुणी हरव्यो सोय ॥ ५ ॥
॥ ढालगणत्रीशमी ।। , ॥ गेंड्डानी देशी ॥ घरे आवी सवी वात प्रकाशी, मनमां धरी उ त्साह ॥ अलवेलो रंगीलो नाह, अलवेलो हठीलो नाह, अलवेलो बबीलो नाह ॥ अलवेलो० ॥ ए आंकणी ॥१॥ वायुं अमाहं न करे वहालो, मन मां सुखरी चाह ॥ अलवेलो॥ ३॥ नामिनी\ नुवनोपरिजूमें, लाग्यो क्रीडामांहि ॥ अल ॥ ३ ॥ रमणी साथें रसनी वातें, तिहां वेला वदु वही जाय ॥ अल० ॥ ४ ॥ राजन चिंते हजी गुं न आव्यो, तेडण ए वत्स एण नाय ॥ अल० ॥ ५ ॥ नृप चिंते चित्तमां एहने घर, शी साम ग्री थाय ॥ अ॥ ६ ॥ जोवा कारण चर एक मूक्यो, पोतानो तेणें राय ॥ अ॥ ७ ॥ चर जोवे ज घेर निहाली, नवि देखे रसवती कां ।। अल ॥ ७ ॥ परकाशे नूपतिनी बागें, सेवक पाडो या ॥ अ॥ ए॥ पुनरपि वीजो नर तिहां ावी, जुवे सजाइ तास ॥ अ० ॥ १ ॥ कहे नृपने घर धूम न दीसे, शी जोजननी बाश ॥ य० ॥ ११ ॥ चिंते नृप जुन की गाइ, मनमांहि एम नदास ॥ अ॥ १२ ॥ तव ते नो जन अवसर जाणी, वत्स आव्यो सुविलास ॥ अ० ॥ १३ ॥ कहे राजेश्व रने कर जोडी, पाउधारो मुफ आवास ॥ अ० ॥ १४ ॥ याय हवे असुर जोजनने, उगेजी लील विलास ॥ ॥ १५॥ नृप कहे शी हांसी मुक साथें, मांमी सुगुण निवास ॥ ॥ १६ ॥ विण सामग्री तेडे अ मने, ए तुमने सावाश ॥ अ॥ १७ ॥ कोइ न मन्युं वीजें हांसीने, नांग्यो तुज विश्वास ॥ अ० ॥ १७ ॥ कहे वत्स तुं मुज साहिब तहारो, ढुं तुं चरणनो दास ॥ ५० ॥ १ ॥ तुम हांसी करतां हां महारी, कुजलला जाय नासि ॥ अ॥ २० ॥ युं तुम रसवती के कारण,