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श्री शांतिनायनो रास खंम पहेलो. १७ पास वस्यो मनरंग हो ॥ सुं० ॥ कv ॥ ॥ वासनुवनथी ससंचमें, बाहिर यावी तेह हो ॥ सुं ॥ दासी समीप उनी रही, पूढे ते सस्नेह हो ॥ सुं० ॥ कल ॥ ए ॥ केम स्वामिनी उतावलां, मुख न समाये श्वास हो ॥ सुं० ॥ प्रीतमथी केम उजगी, नाखो श्म निःश्वास हो ॥ सुं०॥ क ॥ १० ॥ नहिं मुफ वनन इहां कने, दीसे कोढी कोय हो ॥ सुं० ॥ नाह गयो किहां माहरो, कहे एम सुदती रोय हो । सु॥ कण ॥ ११ ॥ रात्रि गई रवि कगीयो, गइ पीयर ते बाल हो ॥ सुं० ॥ वात सुणावी मातने, सुणि कती चित्त जाल हो ॥ सुं० ॥ कण ॥ १२ ॥ राजसनामांहे आवियो, मंत्री कुबुझिनिधान हो ॥ सुं० ॥ श्यामवदन नीचे मुखें, वो साव्यो राजान हो ॥ सुं०॥क ॥१३॥ केम तुमें आमण दूमणा, कहो मंत्री मन मेलि हो ॥ सुं॥ हर्षने ठामें खेद श्यो, करोयथारुचि केति हो ॥ सुंण् ॥ क० ॥ १५ ॥ राजन् अवली कर्मनी, गति दीसे असहाय हो ॥ सुंग ॥ विधि प्रतिकूल थयो यदा, सो जग कीजें उपाय हो । सुंग ॥ क७ ॥ १५ ॥ यमुक्तं माघे ॥ प्रतिकूलतामुपगतेहि विधौ, विफलत्वमेति बदु साधनता ॥ अवलंबनाय दिनन रनून्न पतिष्यतः करसहस्रमपि ॥ ॥ १ ॥ पूर्वढाल ॥ कृत उदय थावे सही, विषु कत नावे कोय हो ॥ सुं॥ खेद किश्यो करवो शहां, कर्म करे सो होय हो ॥ सुं० ॥ कण् ॥ १६॥ यतः॥ उदयति यदि जानुः पश्चिमायां दिशायां, प्रचलति यदि मेरुः शीततां याति वह्निः ॥ विकसति यदि पद्मं पर्वताये शिलायां, तदपि न चलतीयं नाविनी कमरेवा ॥ ५॥ तथाचान्यदप्युक्तं ॥ गाथा ॥ रे जीव सुह उहेसु, निमित्तमित्तं परं वियाणा ॥ सकयफलं जूंजतो, कस्स मुहा कुप्पति प रस्स ॥३॥ पूर्वढाल ॥ राय कहे मंत्री कहो, दुःखनुं कारण मुज हो ॥ सुं० ॥ अंतर श्यो मुफ धागलें, प्रकासो निज गुम हो ॥ सुं० ॥ का ॥ १॥प्रीति तिहां पडदो, किस्यो पडदो तिहां कुणप्रीति हो।सुं॥ हेजें हियर्नु खोलियें, एहिज प्रीतिनी रीति हो ॥ सुं॥क ॥ १७॥यक्तं ॥ ददाति प्रतिगृह्णाति, गुप्तमारख्याति प्रवति ॥ शुंक्ते नोजयते चैव, पडिधं प्रीति लक्षणम् ॥ ४ ॥ पूर्वढाल ॥ नारखी निसासो ते कहे, राजन जे करे देव हो । सुंग ॥ तिहां नहिं जोरो केहनो, कृत जोगवीयं सदैव हो । सुं० ॥ क० ॥ १५ ॥ तुम पुत्रीनी संगतें, मुज अंगज गुणवंत हो ॥ सुंग