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श्री शांतिनाथनो रास खंग बडो.
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पण ए निःस्वामिक बे तो ॥ ज० ॥ यहुं नवि लहे कोई गुव ॥ १८ ॥ चैत्य करावीश निवां तो ॥ ज० ॥ करइयुं ए जीर्ण नद्धार ॥ पुष्य ए एहना स्वामीने तो ॥ ज० ॥ होो नहिं जस पार ॥ १९ ॥ एम चिंती लीधां तेणें तो ॥ ज० ॥ कोडीना मूल्यनां पंच ॥ ताणी गांठे बांधीयां तो ॥ ज० ॥ सुलसें करि रूडो संच ॥ २० ॥ वेलाकुल पुर यावीयो तो ॥ ज० ॥ जलनिधि तट सुखकार || श्रीसार शेठने मंदिरें तो ॥ ज० ॥ याव्यो ते सुलस कुमार ॥ २१ ॥ खागत स्वागत बहु करी तो ॥ ज० ॥ शेठ दीये सन्मान || बहु कोडें दोय वेचियां तो ॥ ज० ॥ रयण दो तेज य मान ॥ २२ ॥ नांग यही बहु तेहनां तो ॥ ज० ॥ निजपुर चालण प्रेम ॥ साथ संघातें चालीयो तो ॥ ज० ॥ मनमांहे चिंते रे एम ॥ २३ ॥ मलशुं जइ घर नारीचं तो ॥ ज० ॥ करचुं ए लील विलास ॥ स्वजन सदु सायें मले तो ॥ ज० ॥ पूरचं मंदिरवास ॥ २४ ॥ एक महोटी ख वी तिहां तो ॥ ज० ॥ जातां ए यावि विचाल || एक प्रदेश तेहने तो ॥ ज० ॥ उतरखो साथ विशाल ॥ २५ ॥ धान्यपाक सदुको करे तो ॥ ज० ॥ प्रावि कजाती ए धाड ॥ थइ सन्नद्ध सहामो थयो ॥ ज० ॥ पूरवा वैरीनां लाड ॥ २६ ॥ रणमांहे नासी गया तो ॥०॥ सुलसना सुनट
नेक ॥ रह्यो तिहां कणे एकलो तो ॥०॥ सुलस धरीमन टेक ॥२७॥ वांध्यो पाठा वादुयें तो ॥ ज० ॥ लूंटी लीयो सवि माल ॥ कर्म दशा जब पालटी तो ॥ ० ॥ नर होय जेम कंगाल ॥ २८ ॥ ते लेइ चाव्या सुल सने तो ॥ ज० ॥ वेच्यो ए वलिकने हाय | तेणें जड़ पारसकूलमां तो ॥ ज० ॥ थाप्यो ए सुलस अनाथ ॥ २५ ॥ रुधिर तो काजें लीयो तो ॥ ज० ॥ जुन जुन पूरवपाप || वंधातां मालिम नहिं तो ॥ ज० ॥ उदये लहे रे संताप ॥ ३० ॥ त्र्याकर्षी नर तनुथकी तो ॥ ज० ॥ रुधिर नरे कुंम के || तेमांहे तिहां उपजे तो ॥ ज० ॥ जीव घणा लघुदेहि ॥ ३१ ॥ कमीराग तेहनो नीपजे तो ॥ ज० ॥ वसन रंगाये रे तेण ॥ रंग न तेहनी उतरे तो ॥ ज० ॥ दाधे ए पण जलोष ॥ ३२ ॥ सुलस सहे दुःख तेहवां तो ॥ ज० ॥ रुधिरशुं खरड्यां रे यंग || पड्यो व्यचेत भूमि तले तो ॥ ज० ॥ विरु ए कर्मप्रसंग ॥ ३३ ॥ नारंग एक तिहां या थियो तो ॥ ज० ॥ चंचुमां यही तस सार | लेइ उठ्यो थंबरतलें तो