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________________ प्रस्तावना. धावेला ने, के जेना वांचवाथी वांचनारने तथा सांग नारने घमंद एवों आनंद उत्पन्न थाय ,ते आनंदतुं यथायोग्य वर्णन वामां अमारी कलम, काम करी शकती नथी.धने या ग्रंथ संस्कृतपरथी जे रासरूपें रच्यो ,ते तो कवियें केवल संस्कृतनापाना अविज्ञातजनोनो महोटो उपकार करेलो ने.केम के ? जो पा रास न करे, तो संस्कृतना अविज्ञातजनोने श्री शांति नाथना चरित्र वांचवानो लान मली शके नहिं. हवेथा ग्रंथनेयमोयें ज्यारें बापवानो विचार करयो,त्यारे ते बापवाने मा. प्रथम आग्रंथनी प्रत जोश्य.तो पनी ते प्रतनो जे जे स्थलें मलवानो संजव हतो,ते ते स्थलें अमोयें पत्र धारा तपास कराव्यो,अने वली पाहिं मुंवश्मा पण प्रयासपूर्वक तपास कयो,परंतु कोइ पण स्थलथी तेनी एक पण प्रत अमोने उपलब्ध थ नही; मात्र नावनगरथी अमारा सुझसाधर्मीना जे शेव कुंवरजी आणंदजी ते अमोने एक प्रत मोकली. अने पड़ी एक प्रत थमारा घर पस्तको शोधवाथी मली यावी.तेमां अमारा घरनी प्रत शोध करेली होवाथा घणी गुम हती, परंतु ते प्रतमां प्रथमथी ते चोथा खमनी त्रीजी ढाल पर्यत पत्रोज हतां नहिं,त्यारें तो ते नावनग रथी श्रावेली प्रत उपरग्रीज अमायं पा ग्रंथ यथामति संशोधन कराचीने ते चोथा खमनी त्रीजी ढाल सुधी बाप्यो , माटें एक प्रतपरथी उपावाथी तेमां केटलीएक नूलो रही गश्हों . तदनंतर तो अमोयें या ग्रंथने वेदु प्रत सायें मेलावी, तेनुं प्रयास पूर्वक यथावुद्धि संशोधन करावी वाप्यो . तो पण या ग्रंथमां दृष्टिदोपथी तथा कंपोस करनारनी जूलथी तथा अज्ञा नी जे कां नूल चूक रही गइ होय,तो तेने सर्वसाधर्मिनाइयोये, मारी पर सुधारी बांचवारूप कृपा करवी. अने वली हे सुझजनो संसार विटंबणाने बधारनार एवा बीजा कार्योमा व्यर्थ व्यय न करतां श्राधा श्रमारा, सारो छेदक एवा उत्तम कार्योमांतन, मन धनधी उदार श्राश्रय श्रापबामांश्रमा रा पिताना समयमांजेम वरूपरिकर रहेता हता, तेम सांप्रतलमयमांपए रदेशो. एवी थमने पूर्ण श्राशावे. कारण के धावा ज्ञानवधिकार्यने उत्ते जन प्रापनारा जनोने झानदान समान पुण्यनी प्राप्ति थाय दे. तुमनिजनेषु फि बुद्ध शिलेखनेन । शुभं लयात् ॥ ॥ श्रावक, खीमजी जीमसिंह माणक ।।
SR No.010253
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1892
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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