________________
२३३ . जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो. होय तो एम कीजें, दान संपत्ति सारु दीजें ॥ ५ ॥ गुरु दीर्छ तप लीधु, माने कारिज सीधुं ॥ धन्य गुरु मुज समजावी, सूधी राह वतावी . ॥ ६ ॥ गुरु वंदी घरे आवी, कहे पाडोशण जावी ॥ तप करे मन हित - घाणी, लोकें उत्तम जाणी ॥ ॥ पारणे खवर ले सारी, ए गुं करशे । विचारी ॥ तप महोटुं जिन साध्यु, बातम गुणथी ए वाध्यु ॥ ७ ॥ सात्त्विक राजसी जोय, तामस त्रीजु ए होय ॥ दोय तजी एक करीयें, सहेजें शिवसुख वरीयें ॥॥ तपस्वी घणी थइ नारी,एक दिन निंत मका री॥ जोतां कंचन पायो, हियडे हेज न मायो ॥ १० ॥ वाधी तपनी प्रतीति, उजमणुं करे रीति ॥ जिनवर पूजा रचावे, साहामी तेडी जिमा ॥ ११ ॥ तप ऊजमणुं ए कीधुं, मपुज जन्म फल लीधुं ॥ तप उजमणा । थी वाधे, निज उत्साह जो साधे ॥ १२ ॥ तपथी होवे व्यवदान, तप .. ए मुक्ति निदान ॥ तप तपीयु ए नीराशी, प्रगटे निजगुण राशि ॥ १३ ॥ यमुक्तं ॥ यदूरं यमुरा० ॥१॥ मासखमण उपवासी, समगुणनो जल राशि ॥ एहवे एक मुनि आव्यो, श्रीदत्ता मन जाव्यो ॥ १४ ॥ उठी गई तस सामी, पाउ धारो मुफ स्वामी ॥ पतितने पावन कीजें, आहार निरवद्य लीजें ॥ १५ ॥ पडिलाने मुनि नावें, अशनादिक वहोरावे ॥ कहे कृतकृत्य हुँ बाज, संतोष्या मुनिराज ॥ १६ ॥ धर्म कहो मुझ मीठो, फल जस नयाले दीगो ॥ पाली पोरसी थाइ, सुराजो धर्म : सखाइ॥ १७ ॥ मुनिवरें कीधो थाहार, मास खमण चोविहार ॥ धास्यो दिवस वीजाथी, सूधो मुक्तिनो साथी ॥ १७ ॥ श्रीदत्ता तिहां यावे, मुनि वर वांद्या ते ए नावें ॥ मुनि कहे जिनवर धर्म, निसुणो एहनो मर्म ॥१॥ त्रीजा मित्र समान, आपे शिवसुखदान ॥ एहना तीन प्रकार, सुणजो ते निर्धार ॥ २० ॥ प्रथम त्वचागत कहीये, दिलमांहे वहीये ॥ बीजो अ. स्थिगत साचो, पण परमारथ काचो ॥ २१ ॥ त्रीजो मजामां नेदो, धर्म । न जाये उठेद्यो ॥ प्राणांतें नवि मूके, कष्ट पडे नवि चूके ॥ २२ ॥ एह । यर्थ एम ध्यावे, परधनर्थ मन लावे ॥केम अमूरत धर्मे, अस्थि मऊ कहो ...
मम ॥ १३ ॥ इहां उपनय वतलावे, मुनि हवे एम समजावे ॥ कही पच . " वीशमी ढाल, त्रीजे खमें रसाल ॥२॥ सर्वगाथा॥७३६॥ श्लोक ॥१॥