________________ 447 जैनकथा रत्नकोप भाग आठमो. विशाला, मंदिर काक जमाला रे // // 7 // दुःख दोहग सवि दूर प ये, जे ए प्रनुगुण गाये रे // दोपी कुश्मन नाशी जाये, जन्म कृताः थाये रे / / नग॥ ए // जिनगुण गातां नावें जणतां, श्रवणें तेम सार तां रे ॥थलवे अलगां होय अणमिलता, आवि मले सवि चलता रे न // 10 // मूकी विकथा वात अनेरी, जिनगुण वात जलेरी रे // कर कुगति न जूवे हेरी, लाहिये मुक्तिनी शेरी रे // ज० // 11 // तपगब यक सुगुरु मुणिंदा, श्रीहरि विजय सूरिंदा रे // बूजव्यो अकबर शाह न दा, मोहनवनीकंदा रे // 0 // 12 // पडह अमारी तणा वजडार जजिया कर बोडाया रे // मावर सरोवर जाल मुकाया, महियल सुज गवाया रे // ज० // 13 // साह कुंयरकुल साहस धीरा, नाथीकूखें रा रे // प्रगट्या पूरव पुण्य अंकूरा, धर्म करण थया शूरा रे // ज० 14 // अकबर शाह कयो जेणें सीधो, वीरुद जगगुरु दीधो रे // महि लमांहे सवलो यश लीधो, चिंतित कारिज कीधो रे // ज० // 15 // विजयदान गुरु पाट पटोधर,उदयो अधिक सवाई रे // पंच विषय परिह करखो जेणे, तप तपिया सुखदायी रे // न० // 16 // दोय सहस यां ल जस कीधां, तिम नीवी तिम जाणो रे ॥त्रण सहस पट् शत वर उपरें, तप उपवास वखागो रे // 0 // 17 // चार कोडि संख्या कीधो, श्रीसहगुरु सद्यायो रे // अष्टोत्तरशत मुनि जिणें दीरव्या, ए ग पुण्यें पायो रे / न // 17 // पंच शत संरख्या जस उपदेश, देहरा प्रासादो रे // नविजन नाव धरीने मांमया, दीछे दुवे आनंदो रे // // 15 // विप्रतिष्ठा कीधी गुरुजी, पचास बार उदारो रे / / पाटण मुख नयर बहु उत्सव, वरत्यो जय जयकारो रे // // 50 // यात्र दोय सि-हाचल केरी, दोय गिरनारे कीधी रे // लाख बिंब जुदायां। ननां, महियल त लीधी रे // ज० // 21 // मान तजी ऋषि मेघन नामें, सूका मतनो स्वामी रे // जिनप्रतिमा धागधक हू, दीर गुरुने : मी रे // न० // 22 // मागशिर शुदि नवमी दिन सुंदर, साळुयर कु. थायो रे // पन्नर यासीय पालणपुरमां, नाथायें कुंवर जायो रे न० // 23 // पन्नर नन्नुयें कार्निक बदिमां, वीजें दीक्षा लीधी रे // संवगोल साते नागारे, पंमित पदवी दीधी 3 // // 24 // संबत शो