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. श्री शांतिनायनो रास खंम पांचमो. ३१ धावी पडद्यं ॥२२॥ नृपें वटु तेड्या वे लाल, तिहां कणे मांत्रिका ॥ जाण ने जोपी वे लाल, वदुला तांत्रिका ॥ ॥ तांत्रिका कोश्थी पार नाव्यो, कहे एम मंत्रवादीयो ॥ मुज अत्रे निर्मल झान सधु, नहिं दुं जन्मा दीयो ॥ २३ ॥ जेहने निहणे वे लाल, ते निकलंक डे ॥णे कांतारें वे लाल, नझरिया अजे ॥ ॥ नइस्या एवं व्याल वानर, वाघ नाडि धम वली ॥ ते इहां आव्यो पूजियो फल, फूलगुं कपि मन रली ॥ २४॥ तेम वली वा वे लाल, एहनी जक्तिने ॥ तुझ सुत हणियो वे लाल, वलीये शक्तिने॥॥शक्ति वलीये एह नूपण, आपीयु ले एहने ॥ ते माटें राजन कहूँ तुमने,म मारिश गुणगेहने ॥२५॥ इण हिज नोले वे लाल,मौष्टि कने कडें ॥ ते कृतघनथी वे लाल, तें सघलुं लघु ॥ ॥ लघु स घटुं पुष्ट जाणी, हुकम मारणनो कीयो ॥ विचमांहि जातां तेह नुजगें, एह इिंज अवलोकियो ॥ २६ ॥ मूकावणने वे लाल, तुम पुत्री मसी ॥ जो ए मूको वे लाल, तो जीवे हसी ॥ ७० ॥ हसी जीवे राय पूजे, कोण प्रत्यय ए सही ॥ अवतारीयो जिण मंत्रवादीयें, ते मुजंगम तिहां वसी ॥२७॥ तिणे सवि मान्युं वे लाल, हिज नृपें मेलीयो । सर्प चूशी वे लाल, विष पाटो लियो ॥ ० ॥ लीयो विप सा दूइ निर्विप, हर्प सदु कोई लह्या ॥ कहे मंत्रवादी निसुणि वाडव, धन्य अहि जातें कह्या ॥ २७ ॥ पंचम खंमें वे लाल, ठही ढालमां ॥ प्रत्युपकारी वे लाल, एहवी चालमां ॥ ॥ चाल एहवी जेह राखे,गुण कस्यो न विसारे ए॥ मुनि रामवाणी सुपो प्राणी, जश्ये तस बलिहार ए ॥ ॥ ॥ २०॥१॥
॥दोहा॥ ॥ कर जीव कृतगुण लहे,न लहे मनुष्य कतन्न । कगायो यहियें एने, करयुं कलाद विपन्न ॥१॥ वात सकल मामी कही, नृप यागल हिजराज ।। तुष्टचित्त राजा थइ, दीधुं देशराज ॥ २ ॥ शिवस्वामी हिज देश निज, पू जा नागविधान ॥ नागपंचमी पर्व-, बरताव्युं मंमाण ॥३॥ एह कथा वायें कही, वानरी आगे सार ॥ माणस जेहवो को नहिं, स्तन्न वडो गमार ॥ ४ ॥ जेम रख दी, लोनीय, ब्राह्मणने निर्धार ॥ तेम तुक पुःख देशे सही, एह निपाद विचार ॥ ५ ॥ नद महेल ए माहीं. शुं . कई वारो वार ॥ हरिप्रिया हर्षे करी, निज जीवित उगार ॥ ६ ॥ कपि