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श्री शांतिनाथनो रास खंम हो. ३३३ तंत नही ए वय तपो, वय तणो धर्म विपे मन नाव ॥ वै० ॥ १५ ॥ कनकवती कहे पूठीने, पूढीने घायु तणुं अवसान ॥ वै ॥ आदरजो तमें दिरकने, दिरकने यो एवं मुज मान ॥ वै० ॥ २० ॥ मन विषु मानी वातने, वातने वांदी गुरुना पाय ॥ वै ॥ नगर जणी चाल्यो तदा, चाल्यो तदा जोजन पान नपाय ॥ वै० ॥ २१ ॥ काननमां मूकी करी, मूकी करी कनकवती तरु हेठ ॥वै ॥ राजकुमर तिहां आवीयो, धावियो गुणचंई सा दीत ॥ वै० ॥ २२ ॥ राग लह्यो देखी करी, देखी करी मा निनी मोहनगार ॥ वे ॥ पूढे हो आवी तेहने, तेहने तुं केनी घरनारि ॥ वै० ॥ २३ ॥ किण कारण इहां एकली, एकली योवनरूप रसाल ॥ ॥ वे० ॥ तुज जरतार किहां अडे, किहां अछे कहो मुझने इण काल ॥ ॥ वै० ॥ २४ ॥ राग सही ते कुमरनो, कुमरनो निज जरतार वैराग्य ।। ॥ वै ॥ निज वृत्तांत कयुं सवि, कमु सवि मोही रही तस राग ॥ वै ॥ २५ ॥ लागी नयनी धाशकी, याशकी जोइ रह्यां अनिमेप ॥ वै०॥ नयण कमलदल पांखडी, पाखडी मोह्यो कुंवर ते देखि ॥ वै० ॥ २६ ॥ यतः ॥ दोहो । नयण पदारथ नयारस, नयरों नयण मिलंत ॥अगजा एयायु प्रीतडी, पहेलां नयण करंत ॥ ६ ॥ पूर्वढाल ।। नोग तपी करेप्रा र्थना, प्रार्थना करे गुणचंद कुमार ॥ वै०॥ यावो हो मानिनी मुफ घरे, मुजवरे सफल करो अवतार ॥ वे ॥ २७ ॥ प्राणप्रिया करि रावा, राख' देगुं नहिं क्षण देह ॥ वै ॥ अवर जणी नवि यादरूं, धादरूं तुझ कपर मुफ नेह ॥ वै० ॥ २७ ॥ कनकवती मन चिंतवे, चिंतवे श्यो पीयुगुं हवे नेह ॥ वै० ॥ उघडशे नहिं माहरू, माहरूं भारवर ए निः स्नेह ॥ वै० ॥ २ ॥ जावं ए राजकुंवर घरे, कुंवर घरे नोग, लीलवि लास ॥ वे ॥ कहे बंची जरतारने, जरतारने याविश ढुं तुम पास ॥ ।। वै ॥ ३० ॥ राजकुंवर गयो मंदिरे, मंदिरें मोह्यो तेहने रूप ॥ वै॥ जगमाहे विषय समो नहिं, समो नहिं महोटो कोई विरूप ॥ वै॥३१॥ के दो खेमें अढारमी, अटारमी ढाल विचारो एह रावणा राम कदे जग कारिमो, कारिमो धिन धिक् नारीनेह ॥३०॥३॥ सर्वगाथा ॥६॥२०॥
॥दोहा सोरठी ॥ ॥ हवे गुणधर्म कुमार, पुरमा जइ उना रह्यो । को न दिये धावकार,