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३६० जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो. ध्यानमां ध्यान शुक्ल मन मान्युं, ज्ञानमां केवल पारसीयां रे ॥ शी॥ ॥ १२ ॥ पचवीशमी उपम लेश्यामां, गुकलथी कर्म कतिन खसियां रे ॥ शी० ॥ १३ ॥ मुनिमां जेम तीर्थकर स्वामी, सुर नर आवी नमे घसी या रे ॥शी ॥ १४ ॥ देव विदेह ज्युं क्षेत्रमें महोटुं, मेरु महिधरमां लसीया रे ॥ शी० ॥ १५ ॥ वनमांहि नंदनवन जेम महोटुं, तरुमां जंबू . उकसिया रे ॥ शी० ॥ १६ ॥ जेम हय गज नर सैन्यमां महोटो, जग च. कीश्वर गुन वसिया रे ॥ शी॥ १७ ॥ जेम रथमां हरिनो रथ महोटो, तेम व्रतमांहि शील कसिया रे ॥ शी० ॥ १७ ॥ बत्रीश उपम चोथा व तनी, जाणी पालो व्रत धसमसीयां रे ॥ शी० ॥ १ए ॥ १00७ ॥ ५॥
॥दोहा॥ ॥ ए व्रत पुष्कर पालतां, पहोंचे सयस जगीश ॥ परदारा लंपट तिके, पुःख पामे निशदीस ॥ १ ॥ यतः ॥ मेरु गरिको जह पबयाणं, एरावणो सार वलो गयाणं ॥ सिंहो वलिछो जह सावयाणं, तहेव शीलं पवरं वयाणं ॥१॥ अन्यच्चोतं ॥ नपुंसकत्वं तिर्यक्त्वं, दौनांग्यं च नवे नवे ॥ नवेन्न राणां स्त्रीणांचा, न्यकांतासक्तचेतसाम् ॥ २॥ पूर्वदोहा ॥ परनारीलोलुप थके, करालपिंग फुःख दी ॥ कहे चकायुध स्वामीने, कवण दुकहो - ३० ॥३॥ प्रजु संबंध कहे तेहनो, करालपिंग जस नाम ॥ पर्षद स्थिर चित्त सांजले, करीय प्रनुने प्रणाम ॥ ४ ॥
॥ढाल सत्त्यावीशमी॥ ॥ देशी रसियानी ॥ कुंथु जिणेसर केसर जीनी देहडी रे लो॥ ए देशी ॥ नवियण, विषय न सेवो विरु दुःखदायी घणुं रे लो॥ कहे जिनशांतिजी रे लो॥ना क्षेत्र जरतमा नलपुर पुर सोहामणुं रे लो । सुणो मन खाते जी रे लो॥ न० ॥ तिहां नलपुत्र नरेश्वर राज्य करे गुणी रे लोक ॥ ॥ ज० ॥ नज्ज्वल जेहनी कीर्ति चिटुं दिशिमां सुणी रे लो॥सुणो मन ॥ १॥ न ॥ तेहने पापाजीष्ट पुरोहित वे जलो रे लो ॥ कल ॥ ज०॥ नाम करालथी पिंग घडे तस निर्मलो रे लो। सु ॥ ज० ॥ शांति कर म मांहे माह्यो अति रलियामणो रे लो ॥ कण ॥ ज० ॥ रायतणे मन मान्यो लोक नमे घणो रे लो ॥ सु० ॥ २ ॥ ॥ तिण पुरमा एक न्यतनय वासो वसे रे लोक ॥ ॥ नामें ते पुष्पदेव पने करी