________________
श्री शांतिनाथनो रास खंम त्रीजो.
११७
याति दूरमसो जीवः पापस्थानानयतः ॥ तत्रैवानीयते नूयो, जिनव प्रौढकर्मणा ॥ २ ॥ ढाल पूर्वनी ॥ म म कर हो जीव म म कर रोप ल गार, उपरे हो जीव ए अपराधी ऊपरें जी ॥ ए सदु हो जीव ए सहुता हरो दोप, परनवें हो जीव परनवें सुख तुं नवि करे जी ॥ १९॥ श्राव्यो हो राजा याव्यो हो एम शुभ नाव, वांध्यो हो राजा बांध्यो वडें वि वांक गुं जी ॥ यावे हो राजा यावे हो साहमे पूर, डियुं हो राजा प्रडियुं प्रगुन नृप रांकशुं जी ॥ २० ॥ एक दिन हो राजा एक दिन रमतां हो गोप, मोई हो राजा मोई पडी मुख उच्चली जी ॥ ताहरा हो राजा ता हरा बंधवनी वात, नीपनी हो राजा नीपनी कर्म माहावली जी ॥ २१ ॥ शोलमी हो जवि शोलमी चीजे खंम, जांखी हो राजा नांखी ढाल ए कर्मनी जी ॥ साखी हो राजा साखी होवे एक धर्म, धर्मयी हो राजा ध मैथी प्रापति शर्मनी जी ॥ २२ ॥ सर्वगाथा ॥ ४६ ॥ श्लोक ॥ ११ ॥ ॥ दोहा ॥
॥ गुरु मुखथी एम सांजली, धमरदन नूपाल ॥ प्रेमतो वश वलवले, पड्यो मोहनी जाल ॥ १ ॥ गुण संनारे तेहना, निर्मल गंगा नीर ॥ हडकूद लागी हीये, नय चाव्यां नीर ॥ २॥ पर उपगारी शिरोमणि, हा बंधव हा त्रात ॥ वहेला यावो वाहला, करवा मोनुं वात ॥ ३॥ में तुमनें वास्यो घणुं, मित्र म जाने विदेश || पण तें कहा न मानीयुं, किदांयी हवे संदेश ॥४॥ सजनीयां साले घणुं, संनारो सो वार || जे विएा घडी न चालतुं, केम चलो जमवार ||५|| हियडा हवे तुं गुं रयुं, गयो ते तुक व्याधार ॥ मित्रानंद मले किन्हांयकी, जीडनो जंजणहार || ६ || एहवा बंधव दो दिला, जेहनी शीतल वाच ॥ काम पडे बिड्डे नहीं, बंधव बीजी वांहि उ ॥ दाल सत्तरमी ॥
॥ पुण्य प्रशंसी ॥ ए देशी ॥ रत्नमंजरी सुषि एवं रे, मूहगत प ताम ॥ हा हा ए गुं नीपन्युं रे, यणचिंत्युं क्ली ग्राम रे ॥ १ ॥ देवर माहरा | एम नवि दीजें बेहरे, गुण बढ्नु ताहरा ॥ एव्यांकणी || तुं मुक ने घणो वाहनों से यात्मनो व्यापार | एम किम वेखी रह्या रे, यो दर्शन एक बार रे || दे० ॥ एम० ॥ २ ॥ जब मुक्तेाणी हां व कीया कई उपाय | याप विपत्तिवेला सही रे, कि सति निर्माय रे
1
1