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जैनकथा रत्नकोप जाग आठमो.
तेहमांए प्रतिहि यवन हो || मोहराजा मोहराजा ए रागरूपें रह्यो जी ॥ १५ ॥ कह्यो पहेलो को पहेलो हो थालस नामथी, मोह वीजे मोह वीजे हो त्रीजे वर्ण हो ॥ दंन चोथो दंन चोथो हो कोध ए पांच मो जी ॥ १६ ॥ बांमीजें बांमीजें प्रमाद बो सही, वली सत्तम वली सत्तम कृपणनो जाव हो ॥ जय अष्टम जय अष्टम शोक नवम कह्यो जी ॥ १७ ॥ वलि दशभुं वलि दशमं ज्ञानपणुं कयुं, अग्यारमो अ ग्यारमो को व्यादेप हो ॥ द्वादशमो द्वादशमो कुतूहल वारीयें जी ॥ १८ ॥ सदुयी ए सदुथी ए वलीयो कह्यो तेरमो, विपयानो विषयानो सवले वांक हो । काम जोगें काम जोगें ए दोय शवद नजे जी ॥ १९॥ यक्तमागमे ॥ जीवाणं नंते कामी जोगी गो० जीवा कामीवि जोगी वि से केाणं नंते एवं वुञ्चइ जीवा कामीवि जोगीवि सोतिंदिय चरिकं दिया ३ पडुच्चकामी जिनिंदिय घालिंदिय फासिंदियाइ पहुंच जोगी नेरइयाणं नंते कामी जोगी गो० नेरइया कामीवि जोगीवि एवं असुरकुमाराणं जीव थप
कुमाराणं पुढवीकाइयाणं नंते कामी जोगी गो० नोकामी जोगी नेर या एवं जाव तेइंद्रियाणं चचरिंदियाणं कामीवि जोगीवि एवं जीव वे माणियाणं इत्यादि ॥ पूर्वढाल ॥ क हि देशन कहि देशन केमंकर विजुजी, विषयानें विपयानें निवारो दूर हो तो शिवसुख तो शिवसुख पामी शाश्वतां जी ॥ २० ॥ प्रभुजीयें प्रभुजीयें प्रकाशी देशना, पडवीशमी घडवीशमी चोथे खंम हो ॥ ढाल निसुणी ढाल निसुणी हो हृदयमा राखजो जी ॥ २१ ॥ ८३ ॥ २ए ॥ दोहा ॥
|| इस अवसर पूढे तिहां, सहस्रायुध नृपनंद ॥ कर जोडी चरणे नमी, नांखो नयनानंद ॥ १ ॥ भगवन् तातें केम लही, पूर्व पर नववा त || वायुवेगादि खेचर तणी, ते नांखो यवदात ॥ २ ॥ ॥ ढाल रंगपत्रीशमी ॥
याज हजारी ढोलो खावशे ॥ ए देशी ॥ कहे एम देमंकर जगधणी, सांजल सहस्रायुध तूप || सुगुण प्राणीजी ॥ ज्ञानरयण जगमां बहुं ॥ तुक तातें हो यवधिज्ञानथी, नांख्युं ए नवनुं स्वरूप ॥ १ ॥ सुगुण ॥ ॥ ज्ञा० ॥ एांकणी ॥ प्रभु कहो केता नेद ते तेहना, करि करुणा जगदाधार ॥ जिद राय जी, बलिहारी प्रजुनामनी ॥ कहे नेद