________________
श्री शांतिनाथनो रास खंम पाचमो. २३५ स झान ॥ ज० ॥ कपिनारी मरी किहां गइ, मुज दाखो मायं मान ॥ ज० ॥ ११ ॥ कहे गुरु सुण सावधानगुं, मरी तेह गई सुरलोक ॥ ज० ॥ यउक्तमागमे ॥गाथा॥ तव संजम दाग जुन,पगईए नदन किवालून ॥ गुरुव यण र निचं, मरी देवे सुरो जाई॥ १ ॥ पूर्वढाल | कहे पुनरपि नृप गुरु जणी, नांखो मुझने गतशोक ॥ ज० ॥ १२ ॥ विदु ने नीच निषाद ते, कुण गति लहेशे नगवंत ॥ ज ॥ कहे मुनि नरक विना नहिं, एह ने अन्य स्थानक संत ॥ ज० ॥ १३ ॥ पंचाश्रवने सेवतो, विपयें विव शीकत जेह जाकतघ्न निर्दय पापीयो, परोहकारीमा रेह ॥ज॥१४॥ उऱ्यांनी क्रूराशयी, नर नरक तणो अधिकारी ॥ ज० ॥ कहे मुनिवर प्र स्तावथी, बीजी दोय गति विस्तार ॥ ज० ॥ १५ ॥ माया नियडीने सेव तो, शउतारत होय सदाय ॥ ज० ॥ आध्यानमांहे मरी, जीव तिर्य चगतिमां जाय ॥ज॥१६॥ मार्दव आर्जव गुणनखो,गतदीप ने अल्पकपा - य ॥ ज० ॥ न्यायी गुणग्राही जीवडो, मरिने ते मानव थाय ॥ ज० ॥ १७॥ कहे नृप मुनिवरने वली, केम वाघ वोल्यो नरवोल ॥ ज० ॥ सुण नूप कारण एहनु, पहेले सुरलोकें अमोल ॥ ज० ॥ १७ ॥ सामा निक सुरनी प्रिया, चवी धावी मनुज मजार ॥ न ॥ देवी रखवाल सुरें मली, पूयुं देवी जरतार ॥ ज० ॥१॥ स्वामिन एह विमानमां, कुण देवी होशे या तार राजा कहे ते वननी एक वानरी,लेहेहो यावी अवतार ॥
॥ ज० ॥ २० ॥ तेमाहलो एक देवता, याव्यो करी वाघनुं रूप ॥ ज० . ॥ तास परीदा कारणें, वोल्यो नरवाणी अनूप ॥ ज० ॥ १ ॥ निपाद
धने वाली वानरी, तेह सायें वक्त विवाद ॥ ज० ॥ कस्यो वली दृष्टांत कह्यां घणां, मनमांहे धरि थाहाद ॥ ज० ॥ २२ ॥ वाघ स्वरूप गुरुयें कामु, नृप निसुणि सह्यो वैराग्य ज॥ निजसुतने राज्य जलाविने,नृप च रए यहे वडनाग्य ॥ ज० ॥ २३ ॥ राजज्ञपि हरिपालजी, पाली संयम व्रत सार ॥ ज० ॥ सौधर्म सुर लोकमांपाम्यो सुरनो अवतार ॥ ज० ॥ २३ ॥ पंचमे श्रातमी ढासमां, कही ए मेघरथजी वात ॥ ज ॥ राम विजय कहे सांनतो, हवे श्येनतणो अवदात ॥ ज० ॥ २५ ॥ इति निपाद वानरीकथा समाप्ता ॥ सर्वगाथा ॥२८॥ लोक तथा गाया मली ॥१५॥