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श्री शांतिनाथनो रास खेम चोयो. १७३ दिवंद के, श्रावशे इंइ ए मन ग्ली हो राज ॥ ॥ करो करो उत्सव विविध प्रकार के, ईशानेजी ललि लली हो राज ॥ लेई लेई लान पा र के. सुग्लोके जाने वली हो राज ॥ ॥ ॥ इंश तिहांथी उत्तम कुल अव तार के, लहीने दीदा साधो हो राज ॥ करता करतां जय विहार के, गुन गुणठाणे वादो हो राज ॥१०॥ झोधी शोधी कमतयो करि अंत के, शिवलीलाने पामो हो राज ॥ धरो धरशे एहनुं ध्यान सुचिंत के,ते सवि
रवने वामशे दो गज ॥ ११ ॥ दारव्यु दारव्युं पट खंझ केरे नाथ के. श्र वधिज्ञाने बालहे दो राज ॥ सांजली सांजली सयलडो साथ के, हर्ष हिटले बहुलो लहे हो राज ॥ १२ ॥ साचुं साधु तुम्ह ताणू ज्ञान के,का मात्रय दीपक जिस्युं हो राज ॥ कीजे कीजे तास गुणज्ञान के, अवर कोर्नु नहिं इस्युं हो राज ॥ १३ ॥ शांतिमती ने वायुवेग महीश के,
अजितमेन श्रीजो सही हो राज || प्रणमी प्रगमी पाय चक्रीश के, निजस्थानक पहोता वही हो राज ॥ १४ ॥ कहे कडे राज्य दवे नरदेव के. पाने नित्य बहती कला दो गज ॥ कुंवर रुडा सहस्रायुध करे मंब के. विनय गुणं करी धागला हो राज ॥ १५ ॥ सदस्यायुध घरे नाम अपंतीनारी के, तेनी करवं ऊपन्यो हो गज ॥ रुडो रुडो कनकदाक्ति के मार के, नग्योवन वय नीपन्यो दो गज ॥ १६ ॥ परणावी तस कामि नी दोय रसात के, कनक वसंत जोटिवें दो राज ॥ माला सेना पद सुकमार के, ना नयाचे दोडियें हो राज ॥१७॥ सुख चिलसंतां गत ने दोन के, कान गयों केतो वही दो राज ॥ दाल ढारमी चांये खमंजगीदा पं. रामविजय जाखी सदी दो गज ॥ १७ ॥ मर्यगाथा ॥ ५५ ॥ २२ ॥
॥दोहा मोरनी॥ 1 कनकान्ति गुमार, नीनंघाने एकदा ॥ पदोनों गहन मगर, कोटा वाग्नी निनवी ॥ १ ॥ पतनोत्पतन कांत, कोइ नर वीठो मुंग ॥ विदा
नेपन को मुगा कारण किस्युं ॥ ॥ नंद कहे वनादन, यामी मनवाया। पण गुणरयाणाडा, विद्याप एक नतियों ।।।
जाफा, नवी नीची पदं समर कडे परकाम, पर .. नपा ३ ॥ पर अनुमा, पुरा प्रेममा पती ॥ निण स्वाति गा, गिया कुमारने ॥ ॥ ने प्रकानी गनि, विद्या