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६५ - जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो. तो, कीजें मुऊ साहन ॥ मो० ॥ वैरी थाये पाधरा, पालुं अखंमित राज ॥ मो० ॥ जो ॥ २० ॥ व्यंतर कहे सुण वालहा, इहां नहिं मा
हरूं जोर ॥मो॥ मुफहूंती वली ए घणा, शौर्य सेविता चोर ।। मो० ॥जो० . ॥ २१ ॥ लोक सहित मुफ तातने, पाण्यो एणे ताम ॥ मो० ॥ वैरी
राख्या वेगला, शहां कीधो विश्राम ॥ मो० ॥ जो० ॥ ॥ वास्युं नय । र पातालमें, कूपमाहे जस मार्ग । मो० ॥ वीजुं वाहिर पुर कयं, उरस्त जोई नूनाग ॥ मो० ॥ जो ॥ २३ ॥ लोक बहु इहांकण वस्यां, चिहुँ दिशि जलनिधि पूर ॥ मो० ॥ आवे बदु वाहाण नखां, अन्न इंधण इहां भूरि ॥ मो० ॥ जो ॥ २४ ॥ एहवे इहांकणे आवीयो, राक्स अति विकराल ॥ मो० ॥ कर्म संयोगें कूपमां, पेगे ते चांमाल ॥ मो० ॥ जो ॥ २५ ॥ सदुजनने नदण करी, बाहिर घाव्यो तेह ॥ मो० ॥ वाहाण वेसीने सदु, नातां मूकी गेह । मो० ॥ जो ॥ २६ ॥ शून्य कस्वां वेहू तिणे, नगर माहा विपरीत ॥ मो० ॥ कर्मकथा कहेतां यका, धजे माहीं चित्त ।। मो० ॥ जो॥ २७ ॥ मुफ उन गिणी देखतां, थयो वदुनो संहार मोराखी मुझने एकली, पापी प्रेम विकार ॥मो॥ जो ॥ २७॥ दुःख म धर रे मानिनी, तुजवरवानीपाश । मो० ॥ परणीने दिन सातमे, करा जोग विलास ॥ मो॥जो० ॥एवीजे खंमें शोलमी, ढालें कुमरी वात ।। मो॥ राम कहे ते नवि चले, जे दीतुं जगतात ॥ मो० ॥ जो० ॥ ३० ॥।
॥ दोहा ॥ ॥ बाज थयो दिन सातमो, कुमरी नांखे तास ॥ होशे पापी पा . वतो, मारे माणस वास ॥ १ ॥ तेमाटे तुमने कहूँ, रहेजो मन दुशि : यार ॥ नहिंतर मंदिर मूकीने, रहो अलगा ए वार ॥ ३ ॥ धनद कहे सुनगे सुगो, नहिं मुज एहनी नीति ।। मुफ हाये ए पापीयो, लहेशे मरण अनीति ॥ ३ ॥ पाके नूप कुमंत्रीथी, कालें फल परिपाक ॥ रोग पचे लं धनथकी, पापी कर्मविपाक ॥ ४ ॥
॥ ढाल सत्तरमी॥ .॥ ताहेरो गुण मान्यो राज ॥ ए देगी ॥ तिलकसुंदरी कहे सादिवा रे. ॥रदो ताना हो राज ॥ तस दार मृत्यु उपाय ॥ मोरे मन मान्या हो राज ।। विद्यापूजन कारणे रे ॥ रहो० ॥ ते वेसे वे ए नाय । मो० ॥१॥ ध्यान